शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

रचना और रचयिता: संजीव 'सलिल'

रचना और रचयिता:




संजीव 'सलिल'
*
किस रचना में नही रचयिता,
कोई मुझको बतला दो.
मात-पिता बेटे-बेटी में-
अगर न हों तो दिखला दो...
*




*

बीज हमेशा रहे पेड़ में,
और पेड़ पर फलता बीज.
मुर्गी-अंडे का जो रिश्ता
कभी न किंचित सकता छीज..
माया-मायापति अभिन्न हैं-
नियति-नियामक जतला दो...
*





*

कण में अणु है, अणु में कण है
रूप काल का- युग है, क्षण है.
कंकर-शंकर एक नहीं क्या?-
जो विराट है, वह ही तृण  है..
मत भरमाओ और न भरमो-
सत-शिव-सुन्दर सिखला दो...
*




*
अक्षर-अक्षर शब्द समाये.
शब्द-शब्द अक्षर हो जाये.
भाव बिम्ब बिन रहे अधूरा-
बिम्ब भाव के बिन मर जाये.
साहुल राहुल तज गौतम हो
बुद्ध, 'सलिल' मत झुठला दो...


 
************************

Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



गुरुवार, 19 जुलाई 2012

रचना और रचयिता: --- संजीव 'सलिल'

रचना और रचयिता



संजीव 'सलिल'
*

किस रचना में नही रचयिता,
कोई मुझको बतला दो.
मात-पिता बेटे-बेटी में-
अगर न हों तो दिखला दो...
*



*
बीज हमेशा रहे पेड़ में,
और पेड़ पर फलता बीज.
मुर्गी-अंडे का जो रिश्ता
कभी न किंचित सकता छीज..
माया-मायापति अभिन्न हैं-
नियति-नियामक जतला दो...
*



*
कण में अणु है, अणु में कण है
रूप काल का- युग है, क्षण है.
कंकर-शंकर एक नहीं क्या?-
जो विराट है, वह ही तृण  है..
मत भरमाओ और न भरमो-
सत-शिव-सुन्दर सिखला दो...
*




















*
अक्षर-अक्षर शब्द समाये.
शब्द-शब्द अक्षर हो जाये.
भाव बिम्ब बिन रहे अधूरा-
बिम्ब भाव के बिन मर जाये.
साहुल राहुल तज गौतम हो
बुद्ध, 'सलिल' मत झुठला दो...
****************************
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com

बाल गीत चूँ चूँ चिड़िया चुन दाना --संजीव 'सलिल'

बाल गीत
चूँ चूँ चिड़िया चुन दाना
संजीव 'सलिल'
*

*
चूँ-चूँ चिड़िया चुन दाना.
मुझे सुना मीठा गाना..

तुझको मित्र  बनाऊँगा
मैंने मन में है ठाना..

कौन-कौन तेरे घर में
मम्मी, पापा या नाना?

क्या तुझको भी पड़ता है
पढ़ने को शाला जाना?

दाल-भात है गरम-गरम
जितना मन-मर्जी खाना..

मुझे पूछना एक सवाल
जल्दी उत्तर बतलाना..

एक सरीखी चिड़ियों में
माँ को कैसे पहचाना?

सावधान रह इंसां से.
बातों में मत आ जाना..

जब हो तेरा जन्मदिवस
मुझे निमंत्रण भिजवाना..

अपनी गर्ल फ्रेंड से भी
मेरा परिचय करवाना..

बातें हमने बहुत करीं
चल अब तो चुग ले दाना..
****

रविवार, 10 जून 2012

नवगीत: कागा हँसकर बोले काँव... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
कागा हँसकर बोले काँव...
संजीव 'सलिल'
*

*
चले श्वास-चौसर पर
आसों का शकुनी नित दाँव.
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...
*
सम्बंधों को अनुबंधों ने
बना दिया बाज़ार.
प्रतिबंधों के धंधों के
आगे दुनिया लाचार.
कामनाओं ने भावनाओं को
करा दिया नीलाम.
बाद को अच्छा माने दुनिया,
कहे बुरा बदनाम.

ठंडक देती धूप,
ताप रही बाहर बेहद छाँव.
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...
*
सद्भावों की सती तजी,
वर राजनीति रथ्या.
हरिश्चंद्र ने त्याग सत्य,
चुन लिया असत मिथ्या..
सत्ता-शूर्पनखा हित लड़ते
हाय! लक्ष्मण-राम.
खुद अपने दुश्मन बन बैठे
कहें- विधाता वाम..

मोह शहर का किया
उजड़े अपने सुन्दर गाँव.
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...
*
'सलिल' समय पर न्याय न होता,
करे देर अंधेर.
मार-मारकर बाज खा रहे
कुर्सी बैठ बटेर..
बेच रहे निष्ठाएँ अपनी,
बिना मोल बेदाम.
और कह रहे बेहयाई से
'भला करेंगे राम'.

अपने हाथों तोड़ खोजते
कहाँ खो गया ठाँव?
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...

***************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

दोहा सलिला: अंगरेजी में - २ संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
अंगरेजी में - २  
संजीव 'सलिल'
*
हिंदी का उपहास कर, अंग्रेजी के गीत.
जो गाते वे जान लें, स्वस्थ्य नहीं यह रीत..
*
'मीन' संकुचित है 'सलिल', 'मीन' मायने अर्थ.
अदल-बदल से अर्थ का, होता बहुत अनर्थ..
*
कहते हैं 'गुड़ रेस्ट' को, 'बैड रेस्ट' क्यों आप?
यह लगता वरदान- वह, लगता है अभिशाप..
*
'लैंड' करें फिर 'लैंड' का, नाप लीजिए मीत.
'बैंड' बजाकर 'बैंड' हो, 'बैंड' बाँधना रीत..
*
'सैड' कहा सुन 'सैड' हो, आप हो गये मौन.
दुःख का कारण क्या रहा, बतलायेगा कौन??
*
'सैंड' कर दिया 'सैंड' को, जा मोटर स्टैंड.
खड़े न नीचे पूछते, 'यू अंडरस्टैंड?',
*
'पेंट' कर रहे 'पेंट' को, 'सेंट' न करते' सेंट'.
'डेंट' कर रहे दाँत वे, कर खरोच को 'डेंट'..
*
'मातृ' हुआ 'मातर' पुनः. 'मादर' 'मदर' विकास.
भारत से इंग्लॅण्ड जा, शब्द कर रहे हास..
*
'पितृ' 'पितर' से 'फिदर' हो, 'फादर' दिखता आज.
पिता-पादरी अर्थ पा, साध रहा बहु काज..
*
'भ्रातृ' 'बिरादर' 'ब्रदर' है, गले मिलें मिल झूम.
भाईचारा अमित सुख किसे नहीं मालूम..
*
'पंथ' विहँस 'पथ' 'पाथ' हो, पहुँचा दूर विदेश.
हो 'दीवार' 'द वाल' क्या, दे सुन लें संदेश..
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

मुक्तक: --संजीव 'सलिल'

मुक्तक: -- संजीव 'सलिल'


*
१.
हे विधि हरि हर प्यारे भारत को देना ऐसी औलाद.
मक्खन जैसा मन हो जिसका, तन हो दृढ़ जैसे फौलाद.
बोझ न हो जो इस धरती पर, बने सहारा औरों का-
हर्ष लुटाये, दुःख-विषाद जो विहँस सके कंधों पर लाद..
२.
भारत आत्म प्रकाशित होकर सब जग को उजियारा दे.
हर तन को घर आँगन छत दे, मन को भू चौबारा दे.
जड़-चेतन जो जहाँ रह रहे, यथा-शक्ति नित काम करें-
ऐसा जीवन जी जायें जो जन्म-जन्म जयकारा दे..
३.
कंकर में शंकर को देखें, प्रलयंकर से सदा डरें.
किसी आँख के आँसू पोछें, पीर किसी की तनिक हरें.
ज्यादा जोड़ें नहीं, न ही जो बहुत जरूरी वह तज दें-
कर्म-धर्म का मर्म जानकर, जीवन-पथ पर शांति वरें..
४.
मत-मत में अंतर को कोई मंतर दूर न कर सकता.
मन-मन में कुछ भेद न हो सत्पथ कोई भी वर सकता.
तारणहार न कोई पराया, तेरे मन में ईश्वर है-
दीनबंधु बन नर होकर भी तू सुरत्व को वर सकता..
५.
कण-कण में भगवान समाया, खोजे व्यर्थ दूर इंसान.
जैसे थाली में परसे तज, चित्रों में देखे पकवान.
सदय रहे औरों पर, दुःख-तकलीफें गैरों की हर ले-
सुर धरती पर आकर नर का, स्वयं करे बरबस गुणगान..
*

बाल गीत: चूँ चूँ चिड़िया चुन दाना -- संजीव 'सलिल'

बाल गीत
चूँ चूँ चिड़िया चुन दाना
संजीव 'सलिल'
*

*
चूँ-चूँ चिड़िया चुन दाना.
मुझे सुना मीठा गाना..

तुझको मित्र  बनाऊँगा
मैंने मन में है ठाना..

कौन-कौन तेरे घर में
मम्मी, पापा या नाना?

क्या तुझको भी पड़ता है
पढ़ने को शाला जाना?

दाल-भात है गरम-गरम
जितना मन-मर्जी खाना..

मुझे पूछना एक सवाल
जल्दी उत्तर बतलाना..

एक सरीखी चिड़ियों में
माँ को कैसे पहचाना?

सावधान रह इंसां से.
बातों में मत आ जाना..

जब हो तेरा जन्मदिवस
मुझे निमंत्रण भिजवाना..

अपनी गर्ल फ्रेंड से भी
मेरा परिचय करवाना..

बातें हमने बहुत करीं
चल अब तो चुग ले दाना..
****
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

मुक्तिका: चूहे करते रोज धमाल... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
चूहे करते रोज धमाल...
संजीव 'सलिल'
*

*
हुआ रसोई में भूचाल.
चूहे करते रोज धमाल..
*
रोटी करने चली निकाह
हाथ न लेकिन आयी दाल..
*
तसला ले या पकड़ कुदाल.
काम न लेकिन कल पर टाल..

*
औरों की माँ-बहिनें क्यों
बोल तुझे लगती हैं माल?.

*
खून न पानी हो पाये.
चाहे समय उधेड़े खाल..
*
तोड़ न पाये समय जिसे.
उस साँचे में खुद को ढाल..
*
करनी ऐसी रहे 'सलिल'
झुके न औरों सम्मुख भाल..
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

दोहा गीत: धरती भट्टी सम तपी... - संजीव 'सलिल'

दोहा गीत:
धरती भट्टी सम तपी...
संजीव 'सलिल'
*

***
धरती भट्टी सम तपी,
सूरज तप्त अलाव.
धूप लपट लू से हुआ,
स्वजनों सदृश जुड़ाव...


बेटी सर्दी के करे,
मौसम पीले हाथ.
गर्मी के दिन आये हैं,
ले बाराती साथ..

बाबुल बरगद ने दिया,
पत्ते लुटा दहेज.
पवन उड़ाकर ले गया,
रखने विहँस सहेज..

धार पसीने की नदी,
छाँव बन गयी नाव.
बाँह थाम कर आस की,
श्वास पा रही ठाँव...
***

छोटी साली सी सरल,
मीठी लस्सी मीत.
सरहज ठंडाई चहक,
गाये गारी गीत..

घरवारी शरबत सरस,
दे सुख कर संतोष.
चटनी भौजी पन्हा पर,
करती नकली रोष..

प्याज दूर विपदा करे,
ज्यों माँ दूर अभाव.
गमछा अग्रज हाथ रख
सिर पर करे बचाव...
***

देवर मट्ठा हँस रहा,
नन्द महेरी झूम.
झूला झूले पेंग भर
अमराई में लूम..

तोता-मैना गा रहे,
होरी, राई, कबीर.
ऊषा-संध्या ने मला,
नभ के गाल अबीर..

थकन-तपन के चढ़ गाये-
आसमान पर भाव.
बेकाबू होकर बजट
देता अनगिन घाव...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

हास्य मुक्तिका: ...छोड़ दें?? --संजीव 'सलिल'

हास्य मुक्तिका:
...छोड़ दें??
संजीव 'सलिल'
*
वायदों का झुनझुना हम क्यों बजाना छोड़ दें?
दिखा सपने आम जन को क्यों लुभाना छोड़ दें??

गलतियों पर गलतियाँ कर-कर छिपाना छोड़ दें?
दूसरों के गीत अपने कह छपाना छोड़ दें??

उठीं खुद पर तीन उँगली उठें परवा है नहीं
एक उँगली आप पर क्यों हम उठाना छोड़ दें??

नहीं भ्रष्टाचार है, यह महज शिष्टाचार है.
कह रहे अन्ना कहें, क्यों घूस खाना छोड़ दें??

पूजते हैं मंदिरों में, मिले राहों पर अगर.
तो कहो क्यों छेड़ना-सीटी बजाना छोड़ दें??

गर पसीना बहाना है तो बहायें आम जन.
ख़ास हैं हम, कहें क्यों करना बहाना छोड़ दें??  

राम मुँह में, छुरी रखना बगल में विरसा 'सलिल'
सिया को बेबात जंगल में पठाना छोड़ दें??

बुढाया है तन तो क्या? दिल है जवां  अपना 'सलिल'
पड़ोसन को देख कैसे मुस्कुराना छोड़ दें?

हैं 'सलिल' नादान क्यों दाना कहाना छोड़ दें? 
रुक्मिणी पा गोपियों को क्यों भुलाना छोड़ दें??
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

बसंत : शब्द चित्र --संजीव 'सलिल'


बसंत : शब्द चित्र संजीव 'सलिल'


*
तब भी धूप-छाँव होती थी.
अब भी सुख-दुःख आते-जाते.
तब भी गत अच्छा लगता था,
अब भी विगत-दिवस मन भाते.
गिर-उठ-चलकर मंजिल तब भी
वरते थे पग हो आनंदित.
अब भी भू पर खड़े नापते गगन 
मनुज हम परमानन्दित .
तम पर तब भी उजियारे ने 
अंकित कर दी थी जय-गाथा.
अब भी रजनी पर ऊषा ने 
फहराई है विजय पताका.
शिशिर सँग तब भी पहुनाई
करता था हेमंत पुलककर.
पावस सँग अब भी तरुणाई
वासंती होती है हँसकर..
योगी-भोगी दोनों तब भी
अपना-अपना गीत सुनाते.
सुर, नर, असुर आज भी 
मानव के मन में ही पाये जाते..
*
 श्री निधि जिसने पायी उसको
अब शेष रहा क्या पाना है?
जो पाया उससे तुष्ट न हो
तो शेष सिर्फ पछताना है.
प्रिय सी प्रेयसी हो बाँहों में 
तो रहे न कोई चाहों में.
भँवरे को कलियों पर मरकर
भी आखिर में जी जाना है.
*
आगमन बसंत का...
इस तरह हुआ जैसे 
कामिनी ने पाया है
दर्शन निज कंत का.
नव बसंत आया है...
नयनों में सपनों सा,
अनजाने अपनों सा,
अनदेखे नपनों सा,
खुद से शरमाया है...
*
आओ, आओ ऋतुराज बसंत.
आकर फिर मत जाओ बसंत.
पतझड़ से सूने तरुओं पर-
नव पल्लव बन छाओ बसंत..
*
बासंती मौसम की सौं है
मत बिसराना तनिक बसंत.
कलियों के सँग खूब झूमना 
मत इतराना तनिक बसंत.
जो आता है, वह जाता है,
जाकर आना तनिक बसंत.
राजमार्ग-महलों को तज
कुटियों में छाना तनिक बसंत..
*
आ गया ऋतुराज फिर से
गाओ मंगल गीत...
पवन री सुर छेड़ स्नेहिल
गुँजा कजरी झूमकर.
डाल झूला बाग़ में
हम पेंग लें-लें लूमकर.
आ गया ऋतुराज फिर से
पुलक-बाँटो प्रीत...
जीत-हारो, हार-जीतो
निज हृदय को आज.
समर्पण-अर्पण के पल में
लाज का क्या काज?
गैर कोई भी नहीं
अपनत्व पालो मीत...
*
नव बसंत सुस्वागतम..
देख अरसे बाद तुमको 
हो रही है आँख नम.
दृष्टि दो ऐसी कि मिट जाए 
सकल मन का भरम.
दिग-दिगन्तों तक न दीखे
छिपे दीपक तले तम.
जी सके सच्चाई जग में
रहे हरदम दम में दम.
हौसलों के लिये ना हो
कोई भी मंजिल अगम.
*
ओ बसंत रुक जाना...
ठिठक गये खुशबुओं के पैर.
अब न खुशियाँ ही रही हैं गैर.
मनाती हैं आरजुएँ खैर.
ताली दे गाना...
पनघट की चल कर लें सैर.
पोखर में मीन पकड़-तैर.
बिसरा कब किससे रहा बैर.
किसने हठ ठाना...
*
जाने कब आ गयी छटा बसंत की.
अग-जग पर छा गयी छटा बसंत की..
सांवरे पर रीझ रही खीझ भी रही
गोरी को भा गयी छटा बसंत की..
संसद से द्वेष मिटा, स्नेह छा गया
सबको भरमा गयी छटा बसंत की..
सैयां के नयनों में खुद को खुद देख.
लजाई-शरमा गयी छटा बसंत की..
प्राची के गालों की लालिमा बनी.
जवां दिल धड़का गयी छटा बसंत की..
*
चलो खिलायें 
वीराने में सुमन
मुस्कुरायें.
बाँह फैलायें 
मूँदकर नयन
नगमे सुनायें
खुशी मनायें
गैर की खुशियों में 
दर्द भुलायें.
*