अभिनव प्रयोग:
दोहा-गीत
-संजीव 'सलिल',संपादक दिव्य नर्मदा
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक।
स्नेह-सलिल सिंचन करें,
महकें सुमन अनेक...
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मन-वृन्दावन में बसे,
कोशिश का घनश्याम।
तन बरसाना राधिका,
पाले कशिश अनाम॥
प्रेम-ग्रंथ के पढ़ सकें,
ढाई अक्षर नेक।
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.....
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कंस प्रदूषण का करें,
मिलकर सब जन अंत।
मुक्त कराएँ उन्हें जो
सत्ता पीड़ित संत॥
सुख-दुःख में जागृत रहे-
निर्मल बुद्धि-विवेक।
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक।
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तरु कदम्ब विस्तार है,
संबंधों का मीत।
पुलक सुवासित हरितिमा,
सृजती जीवन-रीत॥
ध्वंस-नाश का पथ सकें,
निर्माणों से छेक।
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो लगायें एक.....
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