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बुधवार, 17 जनवरी 2018

सोमवार, 15 जनवरी 2018

दोहा दुनिया

शिव को पा सकते नहीं,
शिव से सकें न भाग।
शिव अंतर्मन में बसे,
मिलें अगर अनुराग।।
*
शिव को भज निष्काम हो,
शिव बिन चले न काम।
शिव-अनुकंपा नाम दे,
शिव हैं आप अनाम।।
*‍
वृषभ-देव शिव दिगंबर,
ढंकते सबकी लाज।
निर्बल के बल शिव बनें,
पूर्ण करें हर काज।।
*
शिव से छल करना नहीं,
बल भी रखना दूर।
भक्ति करो मन-प्राण से,
बजा श्वास संतूर।।
*
शिव त्रिनेत्र से देखते,
तीन लोक के भेद।
असत मिटा, सत बचाते,
करते कभी न भेद।।
***
१५.१.२०१८
एफ १०८ सरिता विहार, दिल्ली

मंगलवार, 5 मई 2015

doha : sanjiv

दोहा दुनिया:

अंतर में अंतर

अंतर में अंतर doha
Photo by Miss Stella 
अंतर में अंतर पले, तब कैसे हो स्नेह
अंतर से अंतर मिटे, तब हो देह विदेह
अंतर = मन / भेद
देख रहे छिप-छिप कली, मन में जागी प्रीत
देख छिपकली वितृष्णा, क्यों हो छू भयभीत?
छिप कली = आड़ से रूपसी को देखना / एक जंतु
मूल्य बढ़े जीना हुआ, अब सचमुच दुश्वार
मूल्य गिरे जीना हुआ, अब सचमुच दुश्वार
मूल्य = कीमत, जीवन के मानक
आंचल से आंचल ढँकें, बची रह सके लाज
अंजन का अंजन करें, नैन बसें सरताज
आंचल = दामन / भाग या हिस्सा, अंजन = काजल, आँख में लगाना
दिनकर तिमिर अँजोरता, फैले दिव्य प्रकाश
संध्या दिया अँजोरता, महल- कुटी में काश
अँजोरता = समेटता या हर्ता, जलाता या बालता

रविवार, 10 अगस्त 2014

rakhi ke dohe: sanjiv

दोहा सलिला:                                                                                 
अलंकारों के रंग-राखी के संग
संजीव 'सलिल'
*
राखी ने राखी सदा, बहनों की मर्याद.
संकट में भाई सदा, पहलें आयें याद..
राखी= पर्व, रखना.
*
राखी की मक्कारियाँ, राखी देख लजाय.
आग लगे कलमुँही में, मुझसे सही न जाय..
राखी= अभिनेत्री, रक्षा बंधन पर्व.
*
मधुरा खीर लिये हुए, बहिना लाई थाल.
किसको पहले बँधेगी, राखी मचा धमाल..
*
अक्षत से अ-क्षत हुआ, भाई-बहन का नेह.
देह विदेहित हो 'सलिल', तनिक नहीं संदेह..
अक्षत = चाँवल के दाने,क्षतिहीन.
*
रो ली, अब हँस दे बहिन, भाई आया द्वार.
रोली का टीका लगा, बरसा निर्मल प्यार..
रो ली= रुदन किया, तिलक करने में प्रयुक्त पदार्थ.
*
बंध न सोहे खोजते, सभी मुक्ति की युक्ति.
रक्षा बंधन से कभी, कोई न चाहे मुक्ति..
बंध न = मुक्त रह, बंधन = मुक्त न रह 
*
हिना रचा बहिना करे, भाई से तकरार.
हार गया तू जीतकर, जीत गयी मैं हार..
*
कब आएगा भाई? कब, होगी जी भर भेंट?
कुंडी खटकी द्वार पर, भाई खड़ा ले भेंट..
भेंट= मिलन, उपहार.
*
मना रही बहिना मना, कहीं न कर दे सास.
जाऊँ मायके माय के, गले लगूँ है आस..
मना= मानना, रोकना.
*
गले लगी बहिना कहे, हर संकट हो दूर.
नेह बर्फ सा ना गले, मन हरषे भरपूर..
गले=कंठ, पिघलना.
*

रविवार, 10 जून 2012

दोहा सलिला: अंगरेजी में - २ संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
अंगरेजी में - २  
संजीव 'सलिल'
*
हिंदी का उपहास कर, अंग्रेजी के गीत.
जो गाते वे जान लें, स्वस्थ्य नहीं यह रीत..
*
'मीन' संकुचित है 'सलिल', 'मीन' मायने अर्थ.
अदल-बदल से अर्थ का, होता बहुत अनर्थ..
*
कहते हैं 'गुड़ रेस्ट' को, 'बैड रेस्ट' क्यों आप?
यह लगता वरदान- वह, लगता है अभिशाप..
*
'लैंड' करें फिर 'लैंड' का, नाप लीजिए मीत.
'बैंड' बजाकर 'बैंड' हो, 'बैंड' बाँधना रीत..
*
'सैड' कहा सुन 'सैड' हो, आप हो गये मौन.
दुःख का कारण क्या रहा, बतलायेगा कौन??
*
'सैंड' कर दिया 'सैंड' को, जा मोटर स्टैंड.
खड़े न नीचे पूछते, 'यू अंडरस्टैंड?',
*
'पेंट' कर रहे 'पेंट' को, 'सेंट' न करते' सेंट'.
'डेंट' कर रहे दाँत वे, कर खरोच को 'डेंट'..
*
'मातृ' हुआ 'मातर' पुनः. 'मादर' 'मदर' विकास.
भारत से इंग्लॅण्ड जा, शब्द कर रहे हास..
*
'पितृ' 'पितर' से 'फिदर' हो, 'फादर' दिखता आज.
पिता-पादरी अर्थ पा, साध रहा बहु काज..
*
'भ्रातृ' 'बिरादर' 'ब्रदर' है, गले मिलें मिल झूम.
भाईचारा अमित सुख किसे नहीं मालूम..
*
'पंथ' विहँस 'पथ' 'पाथ' हो, पहुँचा दूर विदेश.
हो 'दीवार' 'द वाल' क्या, दे सुन लें संदेश..
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

दोहा सलिला: संग मुहावरा-२ --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा संग मुहावरा-२
संजीव 'सलिल'
*
'अंकुश रखना' सीख ले, मतदाता यदि आज.
नेता-अफसर करेंगे, जल्दी उनके काज.१२.
*
'अपने मुँह बनते मियाँ मिट्ठू' नाहक आप.
'बात बने' जब गैर भी 'करें नाम का जाप'.१३.
*
खुद ही अपने पैर पर, रहे कुल्हाडी मार.
जब छलते हैं किसी को, जतला झूठा प्यार.१४.
*
'अपना गला फँसा लिया', कर उन पर विश्वास.
जो न सगे निज बाप के, था न तनिक आभास.१५.
*
'अंधे को दीपक दिखा', बारें नाहक तेल.
हाथ पकड़ पथ दें दिखा, तभी हो सके मेल.१६. 
*
कर 'अंगद के पैर' सी, कोशिश- ले परिणाम.
व्यर्थ नहीं करना सलिल, 'आधे मन से काम'.१७.
*
नहीं 'अँगूठा दिखाना', अपनों से हो क्लेश.
'ठेंगे पर मत मारना', बढ़ जायेगा द्वेष.१८.
* 
'घोड़े दौड़ा अक्ल के', रहे पहेली बूझ.
'अकलमंद की दुम बने', उत्तर सका न सूझ.१९.
*
'अपना सा मुँह रह गया', हारे आम चुनाव. 
'कर अरण्य रोदन' रहे, 'सलिल' न 'देना भाव'.२०.
*
'आँखों का तारा हुआ', नटखट कान्हा ढीठ.
खाये माखन चुराकर, गोप 'उतारें दीठ'.२१. 
*

दोहा सलिला: दोहा संग मुहावरा --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा संग मुहावरा
संजीव 'सलिल'
*
दोहा संग मुहावरा, दे अभिनव आनंद.
'गूंगे का गुड़' जानिए, पढ़िये-गुनिये छंद.१.
*
हैं वाक्यांश मुहावरे, जिनका अमित प्रभाव.
'सिर धुनते' हैं नासमझ, समझ न पाते भाव.२.
*
'अपना उल्लू कर रहे, सीधा' नेता आज.
दें आश्वासन झूठ नित, तनिक न आती लाज.३.
*
'पत्थर पड़ना अकल पर', आज हुआ चरितार्थ.
प्रतिनिधि जन को छल रहे, भुला रहे फलितार्थ.४.
*
'अंधे की लाठी' सलिलो, हैं मजदूर-किसान.
जिनके श्रम से हो सका भारत देश महान.५.
*
कवि-कविता ही बन सके, 'अंधियारे में ज्योत'
आपद बेला में सकें, साहस-हिम्मत न्योत.६.
*
राजनीति में 'अकल का, चकराना' है आम.
दक्षिण के सुर में 'सलिल', बोल रहा है वाम.७.
*
'अलग-अलग खिचडी पका', हारे दिग्गज वीर.
बतलाता इतिहास सच, समझ सकें मतिधीर.८.
*
जो संसद में बैठकर, 'उगल रहा अंगार'
वह बीबी से कह रहा, माफ़ करो सरकार.९.
*
लोकपाल के नाम पर, 'अगर-मगर कर मौन'.
सारे नेता हो गए, आगे आए कौन?१०?
*
'अंग-अंग ढीला हुआ', तनिक न फिर भी चैन.
प्रिय-दर्शन पाये बिना आकुल-व्याकुल नैन.११.
*****

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

दीवाली के संग : दोहा का रंग संजीव 'सलिल'

 दोहा सलिला:                                                                                          
diwali-puja2.jpg
दीवाली के संग : दोहा का रंग                           
                                                                                 

संजीव 'सलिल' ,
*
सरहद पर दे कटा सर, हद अरि करे न  पार.
राष्ट्र-दीप पर हो 'सलिल', प्राण-दीप बलिहार..
*
आपद-विपदाग्रस्त को, 'सलिल' न जाना भूल.
दो दीपक रख आ वहाँ, ले अँजुरी भर फूल..
*
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??
*
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
*
दीप जला, जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
दीप बुझा, चुप फेंकना, कर्म क्रूर-अक्रूर..
*
चलते रहना ही सफर, रुकना काम-अकाम.
जलते रहना ज़िंदगी, बुझना पूर्ण विराम.
*
सूरज की किरणें करें नवजीवन संचार.
दीपक की किरणें करें, धरती का सिंगार..
*
मन देहरी ने वर लिये, जगमग दोहा-दीप.
तन ड्योढ़ी पर धर दिये, गुपचुप आँगन लीप..
*
करे प्रार्थना, वंदना, प्रेयर, सबद, अजान.
रसनिधि है रसलीन या, दीपक है रसखान..
*
मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.
दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..
*
मद्यप परवाना नहीं, समझ सका यह बात.
साक़ी लौ ले उजाला, लाई मरण-सौगात..
*

Acharya Sanjiv Salil

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गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

दोहा मुक्तिका (दोहा ग़ज़ल): दोहा का रंग होली के संग : संजीव वर्मा 'सलिल'




दोहा मुक्तिका (दोहा ग़ज़ल):                                                           

दोहा का रंग होली के संग :

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
होली हो ली हो रहा, अब तो बंटाधार. 
मँहगाई ने लील ली, होली की रस-धार..
*
अन्यायी पर न्याय की, जीत हुई हर बार..
होली यही बता रही, चेत सके सरकार..
*
आम-खास सब एक है, करें सत्य स्वीकार.
दिल के द्वारे पर करें, हँस सबका सत्कार..
*
ससुर-जेठ देवर लगें, करें विहँस सहकार.
हँसी-ठिठोली कर रही, बहू बनी हुरियार..
*
कचरा-कूड़ा दो जला, साफ़ रहे संसार.
दिल से दिल का मेल ही, साँसों का सिंगार..
*
जाति, धर्म, भाषा, वसन, सबके भिन्न विचार. 
हँसी-ठहाके एक हैं, नाचो-गाओ यार..
*
गुझिया खाते-खिलाते, गले मिलें नर-नार.
होरी-फागें गा रहे, हर मतभेद बिसार..
*
तन-मन पुलकित हुआ जब, पड़ी रंग की धार.
मूँछें रंगें गुलाल से, मेंहदी कर इसरार..
*
यह भागी, उसने पकड़, डाला रंग निहार.
उस पर यह भी हो गयी, बिन बोले बलिहार..
*
नैन लड़े, झुक, उठ, मिले, कर न सके इंकार.
गाल गुलाबी हो गए, नयन शराबी चार..
*
दिलवर को दिलरुबा ने, तरसाया इस बार.
सखियों बीच छिपी रही, पिचकारी से मार..
*
बौरा-गौरा ने किये, तन-मन-प्राण निसार.
द्वैत मिटा अद्वैत वर, जीवन लिया सँवार..
*
रतिपति की गति याद कर, किंशुक है अंगार.
दिल की आग बुझा रहा, खिल-खिल बरसा प्यार..
*
मन्मथ मन मथ थक गया, छेड़ प्रीत-झंकार.
तन ने नत होकर किया, बंद कामना-द्वार..
*
'सलिल' सकल जग का करे, स्नेह-प्रेम उद्धार.
युगों-युगों मानता रहे, होली का त्यौहार..
********


Acharya Sanjiv Salil

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गुरुवार, 29 जुलाई 2010

अभिनव प्रयोग दोहा-हाइकु गीत प्रतिभाओं की कमी नहीं... संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग

दोहा-हाइकु गीत

प्रतिभाओं की कमी नहीं...

संजीव 'सलिल'
*















*
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
         धूप-छाँव का खेल है
         खेल सके तो खेल.
         हँसना-रोना-विवशता
         मन बेमन से झेल.

         दीपक जले उजास हित,
         नीचे हो अंधेर.
         ऊपरवाले को 'सलिल' 
         हाथ जोड़कर टेर.

         उसके बिन तेरा नहीं
         कोई कहीं अस्तित्व.
         तेरे बिन उसका कहाँ
         किंचित बोल प्रभुत्व?

क्षमताओं की
कमी नहीं किंचित
समताओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
       पेट दिया दाना नहीं.
       कैसा तू नादान?
       'आ, मुझ सँग अब माँग ले-
        भिक्षा तू भगवान'.

        मुट्ठी भर तंदुल दिए,
        भूखा सोया रात.
        लड्डूवालों को मिली-
        सत्ता की सौगात.

       मत कहना मतदान कर,
       ओ रे माखनचोर.
       शीश हमारे कुछ नहीं.
       तेरे सिर पर मोर.

उपमाओं की
कमी नहीं किंचित
रचनाओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
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रविवार, 25 जुलाई 2010

चित्रगुप्त महिमा - आचार्य संजीव 'सलिल'

aum.jpg



चित्र-चित्र में गुप्त जो, उसको विनत प्रणाम।
वह कण-कण में रम रहा, तृण-तृण उसका धाम ।

विधि-हरि-हर उसने रचे, देकर शक्ति अनंत।
वह अनादि-ओंकार है, ध्याते उसको संत।

कल-कल,छन-छन में वही, बसता अनहद नाद।
कोई न उसके पूर्व है, कोई न उसके बाद।

वही रमा गुंजार में, वही थाप, वह नाद।
निराकार साकार वह, नेह नर्मदा नाद।

'सलिल' साधना का वही, सिर्फ़ सहारा एक।
उस पर ही करता कृपा, काम करे जो नेक।

जो काया को मानते, परमब्रम्ह का अंश।
'सलिल' वही कायस्थ हैं, ब्रम्ह-अंश-अवतंश।

निराकार परब्रम्ह का, कोई नहीं है चित्र।
चित्र गुप्त पर मूर्ति हम, गढ़ते रीति विचित्र।

निराकार ने ही सृजे, हैं सारे आकार।
सभी मूर्तियाँ उसी की, भेद करे संसार।

'कायथ' सच को जानता, सब को पूजे नित्य।
भली-भाँति उसको विदित, है असत्य भी सत्य।

अक्षर को नित पूजता, रखे कलम भी साथ।
लड़ता है अज्ञान से, झुका ज्ञान को माथ।

जाति वर्ण भाषा जगह, धंधा लिंग विचार।
भेद-भाव तज सभी हैं, कायथ को स्वीकार।

भोजन में जल के सदृश, 'कायथ' रहता लुप्त।
सुप्त न होता किन्तु वह, चित्र रखे निज गुप्त।

चित्र गुप्त रखना 'सलिल', मन्त्र न जाना भूल।
नित अक्षर-आराधना, है कायथ का मूल।

मोह-द्वेष से दूर रह, काम करे निष्काम।
चित्र गुप्त को समर्पित, काम स्वयं बेनाम।

सकल सृष्टि कायस्थ है, सत्य न जाना भूल।
परमब्रम्ह ही हैं 'सलिल', सकल सृष्टि के मूल।

अंतर में अंतर न हो, सबसे हो एकात्म।
जो जीवन को जी सके, वह 'कायथ' विश्वात्म।
************************************

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

दोहा गीत: धरती ने हरियाली ओढी --संजीव 'सलिल'

धरती ने हरियाली ओढी,

मनहर किया सिंगार.,

दिल पर लोटा सांप

हो गया सूरज तप्त अंगार...

*

नेह नर्मदा तीर हुलसकर

बतला रहा पलाश.

आया है ऋतुराज काटने

शीत काल के पाश.


गौरा बौराकर बौरा की

करती है मनुहार.

धरती ने हरियाली ओढी,

मनहर किया सिंगार.

*

निज स्वार्थों के वशीभूत हो

छले न मानव काश.

रूठे नहीं बसंत, न फागुन

छिपता फिरे हताश.


ऊसर-बंजर धरा न हो,

न दूषित मलय-बयार.

धरती ने हरियाली ओढी,

मनहर किया सिंगार....

*
अपनों-सपनों का त्रिभुवन

हम खुद ना सके तराश.

प्रकृति का शोषण कर अपना

खुद ही करते नाश.


जन्म दिवस को बना रहे क्यों

'सलिल' मरण-त्यौहार?

धरती ने हरियाली ओढी,

मनहर किया सिंगार....
***************

सोमवार, 28 दिसंबर 2009

सामयिक दोहे संजीव 'सलिल'

सामयिक दोहे


संजीव 'सलिल'

पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.

मैं ढूंढ-ढूंढ हरा, घर एक नहीं मिलता..

रश्मि रथी की रश्मि के दर्शन कर जग धन्य.

तुम्हीं चन्द्र की ज्योत्सना, सचमुच दिव्य अनन्य..

राज सियारों का हुआ, सिंह का मिटा भविष्य.

लोकतंत्र के यज्ञ में, काबिल हुआ हविष्य..

कहता है इतिहास यह, राक्षस थे बलवान.

जिसने उनको मिटाया, वे सब थे इंसान..

इस राक्षस राठोड का होगा सत्यानाश.

साक्षी होंगे आप-हम, धरती जल आकाश..

नारायण के नाम पर, सचमुच लगा कलंक.

मैली चादर हो गयी, चुभा कुयश का डंक..

फंसे वासना पंक में, श्री नारायण दत्त.

जैसे मरने जा रहा, कीचड में गज मत्त.

कीचड में गज मत्त, लाज क्यों इन्हें न आयी.

कभी उठाई थी चप्पल. अब चप्पल खाई..

******************

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

दोहा गीत: मातृ ज्योति- दीपक पिता,

दोहा गीत

विजय विषमता तिमिर पर,
कर दे- साम्य हुलास..
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....

*

जिसने कालिख-तम पिया,
वह काली माँ धन्य.
नव प्रकाश लाईं प्रखर,
दुर्गा देवी अनन्य.
भर अभाव को भाव से,
लक्ष्मी हुईं प्रणम्य.
ताल-नाद, स्वर-सुर सधे,
शारद कृपा सुरम्य.
वाक् भारती माँ, भरें
जीवन में उल्लास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास...

*

सुख-समृद्धि की कामना,
सबका है अधिकार.
अंतर से अंतर मिटा,
ख़त्म करो तकरार.
जीवन-जगत न हो महज-
क्रय-विक्रय व्यापार.
सत-शिव-सुन्दर को करें
सब मिलकर स्वीकार.
विषम घटे, सम बढ़ सके,
हो प्रयास- सायास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....

**************
= दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

शब्दों की दीपावली आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

शब्दों की दीपावली

जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.

मोती पले गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.

सीप-दीप से हम मनुज तनिक न लेते सीख.

इसीलिए तो स्वार्थ में लीन पड़ रहे दीख.

दीप पर्व पर हों संकल्पित रह हिल-मिलकर.

दें उजियारा आत्म-दीप बन निश-दिन जलकर.

- छंद अमृतध्वनि

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