नव गीत
तन गाड़ी को
चला रहा मन
सौ-सौ कोडे मार;
स्वार्थ सेठ की
करना होगी
तुझे विवश बेगार...
आस-प्यास हैं
दो कारिंदे
निर्दय-निठुर
फेंकते फंदे
जाने-अनजाने
फंस जाते हम
हिम्मत को हार...
चाहा जागें
पर हम सोये
भूल-भुलैयां में
फंस खोये
मृगतृष्णा में
लालच ने
भटकाया
कर लाचार॥
नेह नर्मदा
नहा न पाये
कलुष-कुटिलता
बहा न पाये
काला-पीला
करो सिखाता
दुनिया का बाज़ार...
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गीत
सूरज ने भेजी है
वसुधा को पाती
लाई है संदेसा
धूप गुनगुनाती...
सुत तेरा आदम
इंसान बन सके
हृदय-नयन में बसे
मधु गान बन सके
हाथ में ले हाथ,
गाये साथ मिल प्रभाती...
उषा की विमलता
निज आत्मा में धार
दुपहरी प्रखरता पर
करे जां निसार
संध्या हो आशा के
दीप टिमटिमाती...
निशा से नवेली
स्वप्नावली उधार
मांग श्वास संगिनी से
आस को संवार
अमावास दिवाली के
दीप हो जलाती...
आशा की किरण
करे मौन अर्चना
त्यागे पुरुषार्थ स्वार्थ
करे प्रार्थना
सुषमा शालीनता हों
साथ मुस्कुराती...
पुष्पाये पावस में
वंदना विनीता
सावन में साधना
गुंजाये दिव्य गीता
मोहिनी विभावरी
अंक में सुलाती...
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