दर्पण मत तोड़ो...
अपना बिम्ब निहारो दर्पण मत तोड़ो,
कहता है प्रतिबम्ब की दर्पण मत तोड़ो.
स्वयं सरह न पाओ, मन को बुरा लगे,
तो निज रूप संवारो,दर्पण मत तोड़ो....
शीश उठाकर चलो झुकाओ शीश नहीं.
खुद से बढ़कर और दूसरा ईश नहीं.
तुम्हीं परीक्षार्थी हो तुम्हीं परीक्षक हो,
खुद को खुदा बनाओ, दर्पण मत तोड़ो....
पथ पर पग रख दो तो मंजिल पग चूमे.
चलो झूम कर दिग्-दिगंत-वसुधा झूमे.
आदम हो इंसान बनोगे प्रण कर लो,
पंकिल चरण पखारो, दर्पण मत तोड़ो.
बांटो औरों में जो भी अमृतमय हो.
गरल कंठ में धारण कर लो निर्भय हो.
वरन मौत का कर जो जीवन पायें 'सलिल'.
इवन में उन्हें उतारो, दर्पण मत तोड़ो.
***************************************
सदस्यता लें
संदेश (Atom)