गीत
अपने सपने
कर नीलाम
औरों के कुछ
आयें काम...
तजें अयोध्या
अपने हित की
गहें राह चुप
सबके हित की
लोक हितों की
कैकेयी अनुकूल
न अब हो वाम...
लोक नीति की
रामदुलारी
परित्यक्ता
जनमत की मारी
वैश्वीकरण
रजक मतिहीन
बने- बिगाडे काम...
जनमत-
बेपेंदी का लोटा
सत्य-समझ का
हरदम टोटा
मन न देखता
देख रहा
है 'सलिल' चमकता चाम...
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