आदि शक्ति वंदना:
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण हैं, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..
परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम रिद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..
जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण हैं, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
परापरा तुम, रिद्धि-सिद्धि तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, ताल,ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..
दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.
प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीं सभी आकार.
चरण-शरण हैं, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया , करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..
मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.
चरण-शरण हैं, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
**************
शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
रविवार, 14 फ़रवरी 2010
नवगीत: फगुनौटी त्यौहार. --संजीव 'सलिल'
नवगीत:
संजीव 'सलिल'
फागुन फगुनाई फगुनाहट
फगुनौटी त्यौहार.
रश्मिरथी हो विनत कर रहा
वसुधा की मनुहार.....
*
किरण-करों से कर आलिंगित
पोर-पोर ले चूम.
बौर खिलें तब आम्र-कुञ्ज में
विहँसे भू मासूम.
चंचल बरसाती सलिला भी
हुई सलज्जा नार.
कुलाचार तट-बंधन में बंध
चली पिया के द्वार.
वर्षा-मेघ न संग दीखते
मौन राग मल्हार.....
*
प्रकृति-सुंदरी का सिंगार लख
मोहित है ऋतुराज.
सदा लुभाता है बनिए को
अधिक मूल से ब्याज.
संध्या-रजनी-उषा त्रयी के
बीच फँसा है चंद.
मंद हुआ पर नहीं रच सका
अचल प्रणय का छंद.
पूनम-'मावस मिलन-विरह का
करा रहीं दीदार.....
*
अमराई, पनघट, पगडंडी,
रहीं लगाये आस.
पर तरुणाई की अरुणाई
तनिक न फटकी पास.
वैलेंटाइन वाइन शाइन
डेट गिफ्ट प्रेजेंट.
नवाचार में कदाचार का
मिश्रण है डीसेंट.
विस्मित तके बसंत नज़ारा
'सलिल' भटकता प्यार.....
**************
संजीव 'सलिल'
फागुन फगुनाई फगुनाहट
फगुनौटी त्यौहार.
रश्मिरथी हो विनत कर रहा
वसुधा की मनुहार.....
*
किरण-करों से कर आलिंगित
पोर-पोर ले चूम.
बौर खिलें तब आम्र-कुञ्ज में
विहँसे भू मासूम.
चंचल बरसाती सलिला भी
हुई सलज्जा नार.
कुलाचार तट-बंधन में बंध
चली पिया के द्वार.
वर्षा-मेघ न संग दीखते
मौन राग मल्हार.....
*
प्रकृति-सुंदरी का सिंगार लख
मोहित है ऋतुराज.
सदा लुभाता है बनिए को
अधिक मूल से ब्याज.
संध्या-रजनी-उषा त्रयी के
बीच फँसा है चंद.
मंद हुआ पर नहीं रच सका
अचल प्रणय का छंद.
पूनम-'मावस मिलन-विरह का
करा रहीं दीदार.....
*
अमराई, पनघट, पगडंडी,
रहीं लगाये आस.
पर तरुणाई की अरुणाई
तनिक न फटकी पास.
वैलेंटाइन वाइन शाइन
डेट गिफ्ट प्रेजेंट.
नवाचार में कदाचार का
मिश्रण है डीसेंट.
विस्मित तके बसंत नज़ारा
'सलिल' भटकता प्यार.....
**************
दोहा गीत: धरती ने हरियाली ओढी --संजीव 'सलिल'
धरती ने हरियाली ओढी,
मनहर किया सिंगार.,
दिल पर लोटा सांप
हो गया सूरज तप्त अंगार...
*
नेह नर्मदा तीर हुलसकर
बतला रहा पलाश.
आया है ऋतुराज काटने
शीत काल के पाश.
गौरा बौराकर बौरा की
करती है मनुहार.
धरती ने हरियाली ओढी,
मनहर किया सिंगार.
*
निज स्वार्थों के वशीभूत हो
छले न मानव काश.
रूठे नहीं बसंत, न फागुन
छिपता फिरे हताश.
ऊसर-बंजर धरा न हो,
न दूषित मलय-बयार.
धरती ने हरियाली ओढी,
मनहर किया सिंगार....
*
अपनों-सपनों का त्रिभुवन
हम खुद ना सके तराश.
प्रकृति का शोषण कर अपना
खुद ही करते नाश.
जन्म दिवस को बना रहे क्यों
'सलिल' मरण-त्यौहार?
धरती ने हरियाली ओढी,
मनहर किया सिंगार....
***************
मनहर किया सिंगार.,
दिल पर लोटा सांप
हो गया सूरज तप्त अंगार...
*
नेह नर्मदा तीर हुलसकर
बतला रहा पलाश.
आया है ऋतुराज काटने
शीत काल के पाश.
गौरा बौराकर बौरा की
करती है मनुहार.
धरती ने हरियाली ओढी,
मनहर किया सिंगार.
*
निज स्वार्थों के वशीभूत हो
छले न मानव काश.
रूठे नहीं बसंत, न फागुन
छिपता फिरे हताश.
ऊसर-बंजर धरा न हो,
न दूषित मलय-बयार.
धरती ने हरियाली ओढी,
मनहर किया सिंगार....
*
अपनों-सपनों का त्रिभुवन
हम खुद ना सके तराश.
प्रकृति का शोषण कर अपना
खुद ही करते नाश.
जन्म दिवस को बना रहे क्यों
'सलिल' मरण-त्यौहार?
धरती ने हरियाली ओढी,
मनहर किया सिंगार....
***************
लेबल:
acharya sanjiv 'salil'.,
basant,
doha,
doha geet,
fagun,
geet,
samyik hindi kavita
सदस्यता लें
संदेश (Atom)