गीत
दर्द तुम्हारा करुण कथा है,
पीर हमारी छद्म व्यथा है?
किस मानक को मान रहे हो?-
बैर अकलसे ठान रहे हो?...
सिर्फ़ तुम्हारी चोट चोट है?,
चोट हमारी तुम्हें खोट है।
हम ज्यों की त्यों चादर रखते-
तुम्हें सुहाए नगद नोट है।
जितना पाया- उतने खाली
गाथा व्यर्थ बखान रहे हो...
पाँच साल में शक्ल दिखायी।
लेकिन तुमको शर्म न आयी।
घर भर कर भी कर फैलाये-
जनगण मन को धता बतायी।
चोर, लुटेरे, डाकू, तस्कर-
बन सांसद अपमान रहे हो...
बोलो क्यों दे तुमको हम मत?
सत्य कह सको, है क्या हिम्मत?
राजमार्ग-महलों को तजकर-
चौपालों पर कर नित गम्मत।
यही तुम्हारी जड़ है जिसको-
'सलिल' नहीं पहचान रहे हो...
********************
शुक्रवार, 27 मार्च 2009
सदस्यता लें
संदेश (Atom)