शनिवार, 26 नवंबर 2011

गीत: चिंतन कर..... -संजीव 'सलिल'

गीत:
चिंतन कर.....
संजीव 'सलिल'
*
चिंतन कर, चिंता मत कर मन
उन्मत मत हो आज.
विचार गगन में, डूब समुद में-
जी भर काज-अकाज...
*
जीवन पल्लव, ओस श्वास-तन
पल में होते नष्ट.
संचय-अर्जन काम न आता-
फेटा खुद को कष्ट..
जो पाता वह रहे लुटाता
दोनों हाथ कबीर.
मन का राजा कहलाता है
खाली हाथ फकीर..
साथ चिता तक चिंता उसके
जिसके सिर पर ताज.....
*
काम उठा फण करता नर्तन
डंसे न लेकिन हेय.
माटी सेमिल माटी रचती
माटी, ज्ञेय-अज्ञेय..
चार चरण, कर चार, नयन हों
चार, यही है श्रेय.
विध्न भी आकर बनता है
विधि का विहँस विधेय..
प्यासों का सम्मिलन तृप्तिपति
बनकर कर तू राज.....
*
रमा में अब तक, अब कर
रमानाथ का ध्यान.
दिखे सहचरी सखी, भगिनी,
माता, बेटी मतिमान..
सज न, सजा ना, जो जैसा है
वही करे स्वीकार.
निराकार साकार दिगंबर
निराधार-साधार..
भोग लगा रह स्वाद-गंध निरपेक्ष
न आये लाज.....
*
भोग त्याग को, त्याग भोग को
मणि-कांचन संयोग.
त्याग त्याग को, भोग भोग को
दुर्निवार हो रोग..
राग-विराग एक सिक्के के
पहलू रहें अभिन्न.
साथ एक के,हो न मुदित,
दूजे सँग मत हो खिन्न..
जिसको जिसमें जब मिलना
मिल जाएगा निर्व्याज.....
*
जो लाया वह ले जाना तू
बिसरा शेष-अशेष.
जो जोड़ा वह साथ गया कब
किसके किंचित लेश?
जैसी की तैसी चादर रख
सो जा पैर पसार.
ढाई आखर के जग सारा
पूजे पाँव पखार..
पीले कर दे हाथ मोह के
संग कर माया साज.....
*****
 Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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