शनिवार, 16 जनवरी 2010

नवगीत: गीत का बनकर / विषय जाड़ा --संजीव 'सलिल'

नवगीत:

संजीव 'सलिल'


गीत का बनकर

विषय जाड़ा

नियति पर

अभिमान करता है...


कोहरे से

गले मिलते भाव.

निर्मला हैं

बिम्ब के

नव ताव..

शिल्प पर शैदा

हुई रजनी-

रवि विमल

सम्मान करता है...


गीत का बनकर

विषय जाड़ा

नियति पर

अभिमान करता है...


फूल-पत्तों पर

जमी है ओस.

घास पाले को

रही है कोस.

हौसला सज्जन

झुकाए सिर-

मानसी का

मान करता है...


गीत का बनकर

विषय जाड़ा

नियति पर

अभिमान करता है...



नमन पूनम को

करे गिरि-व्योम.

शारदा निर्मल,

निनादित ॐ.

नर्मदा का ओज

देख मनोज-

'सलिल' संग

गुणगान करता है...


गीत का बनकर

विषय जाड़ा

खुदी पर

अभिमान करता है...

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