नवगीत:
संजीव 'सलिल'
गीत का बनकर
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...
कोहरे से
गले मिलते भाव.
निर्मला हैं
बिम्ब के
नव ताव..
शिल्प पर शैदा
हुई रजनी-
रवि विमल
सम्मान करता है...
गीत का बनकर
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...
फूल-पत्तों पर
जमी है ओस.
घास पाले को
रही है कोस.
हौसला सज्जन
झुकाए सिर-
मानसी का
मान करता है...
गीत का बनकर
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...
नमन पूनम को
करे गिरि-व्योम.
शारदा निर्मल,
निनादित ॐ.
नर्मदा का ओज
देख मनोज-
'सलिल' संग
गुणगान करता है...
गीत का बनकर
विषय जाड़ा
खुदी पर
अभिमान करता है...
******
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
उम्दा गीत..एक नई सी धारा.
जवाब देंहटाएंhar baar ki tarah nav alavan. badhai.
जवाब देंहटाएं