गुरुवार, 30 जुलाई 2009

गीत: चुप न रहें निज स्वर में गायें

गीत

चुप न रहें

निज स्वर में गायें;

निविड़ तिमिर में

दीप जलाएं...

फिक्र नहीं जो

जग ने टोका

बाधा दी

हर पग पर रोका

झेल प्रबल

तूफां का झोंका

मुश्किल में

सब मिल मुस्काएं...

कौन किसी का

सदा सगा है?

अपनेपन ने

छला-ठगा है

झूठा नाता

नेह पगा है

सत्य न यह

पल भर बिसराएँ...

कलकल निर्झेर

बन बहना है

सुख-दुःख सम

चुप रह सहना है

नहीं किसी से

कुछ कहना है

रुकें न

मंजिल पायें...

*****

5 टिप्‍पणियां:

  1. एक सकारात्मक रचना। बधाई।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. चुप न रहें, निज स्‍वर में गाएं, बहुत ही गम्‍भीर बात है। यदि हम अपने स्‍वर में प्रतिक्रिया करने लगें तब सारी समस्‍याओं का हल निकल सकता है। बधाई।

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  3. एक साकारात्मक भाव लिये मन मैं आशा जगाता हुआ गीत

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  4. geeta ka updesh chhipaye a sakaratmak rachna, atmvishwas badhati rachna.

    verma ji, sadhuwaad.

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  5. गीत सराहा आपने, शत-शत-लें आभार.

    मीत रीत चलती रहे, सृजन सेतु संसार..

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