गीत
अपने सपने
कर नीलाम
औरों के कुछ
आयें काम...
तजें अयोध्या
अपने हित की
गहें राह चुप
सबके हित की
लोक हितों की
कैकेयी अनुकूल
न अब हो वाम...
लोक नीति की
रामदुलारी
परित्यक्ता
जनमत की मारी
वैश्वीकरण
रजक मतिहीन
बने- बिगाडे काम...
जनमत-
बेपेंदी का लोटा
सत्य-समझ का
हरदम टोटा
मन न देखता
देख रहा
है 'सलिल' चमकता चाम...
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अपने सपने कर नीलाम। आज तो दुनिया केवल अपने सपनों के लिए ही जीती है। आपने बहुत ही श्रेष्ठ गीत लिखा है। प्रतीक बहुत अच्छे हैं। हमें सीखने का अवसर मिलता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना आभार्
जवाब देंहटाएंजनमत बेपेंदी का लोटा
जवाब देंहटाएंसत्य-समझ का हरदम टोटा
बहुत खूब सलिल जी। सुन्दर भाव और प्रतीक। वाह।
छोटे छोटे शब्द की रचना यह बेजोड़।
न सपने नीलाम हों न ही सपना तोड़।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सदा सुमन होता अजित,
जवाब देंहटाएंलुटा प्यार ही प्यार.
सलिल स्वप्न साकार कर
स्वर्गबने संसार..