दोहा गीत
विजय विषमता तिमिर पर,
कर दे- साम्य हुलास..
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
*
जिसने कालिख-तम पिया,
वह काली माँ धन्य.
नव प्रकाश लाईं प्रखर,
दुर्गा देवी अनन्य.
भर अभाव को भाव से,
लक्ष्मी हुईं प्रणम्य.
ताल-नाद, स्वर-सुर सधे,
शारद कृपा सुरम्य.
वाक् भारती माँ, भरें
जीवन में उल्लास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास...
*
सुख-समृद्धि की कामना,
सबका है अधिकार.
अंतर से अंतर मिटा,
ख़त्म करो तकरार.
जीवन-जगत न हो महज-
क्रय-विक्रय व्यापार.
सत-शिव-सुन्दर को करें
सब मिलकर स्वीकार.
विषम घटे, सम बढ़ सके,
हो प्रयास- सायास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
**************
= दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
shanno ने कहा…
जवाब देंहटाएंअति सुंदर भाव - व्यक्ति:
विषम घटे, सम बढ़ सके,
हो प्रयास - सायास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
Saturday, October 17, 2009 2:47:00 AM
अविनाश वाचस्पति ने कहा…
अविनाश वाचस्पति October 16, 2009 11:04 PM
उजास का पर्याय पिता
सायास की राह पिता
Saturday, October 17, 2009 8:13:00 AM
संगीता पुरी ने कहा…
सुंदर रचना !!
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!
Saturday, October 17, 2009 8:14:00 AM
योगेश स्वप्न ने कहा…
sunder abhivyakti................shubh deepawali ki mangalkaamnayen sweekaren.
October 17, 2009 6:10 AM
Saturday, October 17, 2009 8:15:00 AM