रविवार, 2 अगस्त 2009

गीत: दीप-वर्तिका सदृश जलेंगे

गीत

> दीपवर्तिका

सदृश जलेंगे


आपद-विपदा


विहँस सहेंगे...


हैं लघु कण



यह सत्य जानते,

पर विराट से

समर ठानते।



पचा न पायें



आप हलाहल,



धार कंठ में-



हम उबारते।

शिवता-सुंदरता

के पथ पर-

सत का कर

गह नित्य बढ़ेंगे...

कहीं न परिमल



हर दल दलदल।

भ्रमर-दंश से



दंशित शतदल।


सलिल-धार


अनवरत प्रवाहित।

शब्द अमरकंटक


से प्रति पल।

लोक नर्मदा

नीति वर्मदा


कार्य शर्मदा


सतत करेंगे...



अजर-अमर हैं

हम अक्षर हैं।

नाद-ताल हैं

सरगम-स्वर हैं।

हम अनादि हैं,

हम अनंत हैं।



सादि-सांत हम



क्षण-भंगुर हैं॥



सच कहते हैं

सब जग सुन ले,

मौत वरेंगे पर न मरेंगे,



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