गीत
> दीपवर्तिका
सदृश जलेंगे
आपद-विपदा
विहँस सहेंगे...
हैं लघु कण
यह सत्य जानते,
पर विराट से
समर ठानते।
पचा न पायें
आप हलाहल,
धार कंठ में-
हम उबारते।
शिवता-सुंदरता
के पथ पर-
सत का कर
गह नित्य बढ़ेंगे...
कहीं न परिमल
हर दल दलदल।
भ्रमर-दंश से
दंशित शतदल।
सलिल-धार
अनवरत प्रवाहित।
शब्द अमरकंटक
से प्रति पल।
लोक नर्मदा
नीति वर्मदा
कार्य शर्मदा
सतत करेंगे...
अजर-अमर हैं
हम अक्षर हैं।
नाद-ताल हैं
सरगम-स्वर हैं।
हम अनादि हैं,
हम अनंत हैं।
सादि-सांत हम
क्षण-भंगुर हैं॥
सच कहते हैं
सब जग सुन ले,
मौत वरेंगे पर न मरेंगे,
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बहुत बढिया!!
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