हम गिर-उठकर
खड़े हुए हैं।
जो न गिरे
वे पड़े हुए हैं...
सूरत-सूरत
सुंदर मूरत,
कहीं न कुछ भी
बिना जरूरत।
पल-प्रति पल
जो जिए बदलकर,
जुड़े टूटकर-
जमे पिघलकर।
जो न महकते
सड़े हुए हैं...
कंकर-कंकर
देखे शंकर।
शिव-शव दोनों
ही प्रलयंकर।
मन्दिर-मन्दिर
बजाते घंटे;
पचा प्रसादी-
पलते पंडे।
तकदीरों से
बड़े हुए हैं...
ये भी, वे भी
दोनों कच्चे,
ख़ुद को बड़ा
समझते बच्चे।
सीख न पाते
किंतु सिखाते,
पुष्प वृक्ष से
झडे हुए हैं...
*****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें