द्विपदिका:
अपनी बात
पल दो पल का दर्द यहाँ है पल दो पल की खुशियाँ हैं
आभासी जीवन जीते हम नकली सारी दुनिया है
आभासी जीवन जीते हम नकली सारी दुनिया है
जिसने सच को जान लिया वह ढाई आखर पढ़ता है
खाता पीता सोता है जग हाथ अंत में मलता है
खाता पीता सोता है जग हाथ अंत में मलता है
खता हमारी इतनी ही है हमने तुमको चाहा है
तुमने अपना कहा मगर गैरों को गले लगाया है
तुमने अपना कहा मगर गैरों को गले लगाया है
धूप-छाँव सा रिश्ता अपना श्वास-आस सा नाता है
दूर न रह पाते पल भर भी साथ रास कब आता है
दूर न रह पाते पल भर भी साथ रास कब आता है
नोंक-झोंक, खींचा-तानी ही मैं-तुम को हम करती है
उषा दुपहरी संध्या रजनी जीवन में रंग भरती है
उषा दुपहरी संध्या रजनी जीवन में रंग भरती है
कौन किसी का रहा हमेशा सबको आना-जाना है
लेकिन जब तक रहें न रोएँ हमको तो मुस्काना हैलम्बी डगर
लेकिन जब तक रहें न रोएँ हमको तो मुस्काना हैलम्बी डगर
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