नवगीत:
बाँस बना ताज़ा अखबार
Photo by seanmcgrath
अलस्सुबह बाँस बना
ताज़ा अखबार,
ताज़ा अखबार,
फाँसी लगा किसान ने
ख़बर बनाई खूब,
पत्रकार नेता गए
चर्चाओं में डूब,
जानेवाला गया है
उनको तनिक न रंज
क्षुद्र स्वार्थ हित कर रहे
जो औरों पर तंज़,
ले किसान से सेठ को
दे ज़मीन सरकार
क्यों नादिर सा कर रही
जन पर अत्याचार?
बिना शुबह बाँस तना
जन का हथियार
अलस्सुबह बाँस बना
ताज़ा अखबार,
ख़बर बनाई खूब,
पत्रकार नेता गए
चर्चाओं में डूब,
जानेवाला गया है
उनको तनिक न रंज
क्षुद्र स्वार्थ हित कर रहे
जो औरों पर तंज़,
ले किसान से सेठ को
दे ज़मीन सरकार
क्यों नादिर सा कर रही
जन पर अत्याचार?
बिना शुबह बाँस तना
जन का हथियार
अलस्सुबह बाँस बना
ताज़ा अखबार,
भूमि गँवाकर डूब में
गाँव हुआ असहाय,
चिंता तनिक न शहर को
टंसुए श्रमिक बहाय,
वनवासी से वन छिना
विवश उठे हथियार
आतंकी कह भूनतीं
बंदूकें हर बार,
‘ससुरों की ठठरी बँधे’
कोसे बाँस उदास
पछुआ चुप पछता रही
कोयल चुप है खाँस
करता पर कहता नहीं
बाँस कभी उपकार
अलस्सुबह बाँस बना
ताज़ा अखबार|
गाँव हुआ असहाय,
चिंता तनिक न शहर को
टंसुए श्रमिक बहाय,
वनवासी से वन छिना
विवश उठे हथियार
आतंकी कह भूनतीं
बंदूकें हर बार,
‘ससुरों की ठठरी बँधे’
कोसे बाँस उदास
पछुआ चुप पछता रही
कोयल चुप है खाँस
करता पर कहता नहीं
बाँस कभी उपकार
अलस्सुबह बाँस बना
ताज़ा अखबार|
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