शनिवार, 9 जनवरी 2010

कुण्डलिनी: --आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा

कुण्डलिनी

आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा



करुणा संवेदन बिना, नहीं काव्य में तंत..

करुणा रस जिस ह्रदय में वह हो जाता संत.

वह हो जाता संत, न कोई पीर परायी.

आँसू सबके पोंछ, लगे सार्थकता पाई.

कंकर में शंकर दिखते, होता मन-मंथन.

'सलिल' व्यर्थ है गीत, बिना करुणा संवेदन.

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http://divyanarmada.blogspot.com/

1 टिप्पणी:

  1. ''salil vyarth hai geet'', kahee kyaa baat salil ji, bin karunaa-samvedan ke har geet vyarth hai. aap isee tarah geet-salinl se sabko pavan karate rahe. shubhkamanaye...

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