शनिवार, 18 अप्रैल 2009

गीत: सूरज ने भेजी है वसुधा को पाती

गीत

सूरज ने भेजी है

वसुधा को पाती

लाई है संदेसा

धूप गुनगुनाती...

सुत तेरा आदम

इंसान बन सके

हृदय-नयन में बसे

मधु गान बन सके

हाथ में ले हाथ,

गाये साथ मिल प्रभाती...

उषा की विमलता

निज आत्मा में धार

दुपहरी प्रखरता पर

करे जां निसार

संध्या हो आशा के

दीप टिमटिमाती...

निशा से नवेली

स्वप्नावली उधार

मांग श्वास संगिनी से

आस को संवार

अमावास दिवाली के

दीप हो जलाती...

आशा की किरण

करे मौन अर्चना

त्यागे पुरुषार्थ स्वार्थ

करे प्रार्थना

सुषमा शालीनता हों

साथ मुस्कुराती...

पुष्पाये पावस में

वंदना विनीता

सावन में साधना

गुंजाये दिव्य गीता

मोहिनी विभावरी

अंक में सुलाती...

*****

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह !! अतिसुन्दर.....मुग्धकारी रचना...वाह !!

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  2. रंज ना किंचित मुझे है,
    एक तो है कद्रदां.
    या खुदा ज्यादा न देना
    कभी दिल के राजदां.

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