नव गीत
तन गाड़ी को
चला रहा मन
सौ-सौ कोडे मार;
स्वार्थ सेठ की
करना होगी
तुझे विवश बेगार...
आस-प्यास हैं
दो कारिंदे
निर्दय-निठुर
फेंकते फंदे
जाने-अनजाने
फंस जाते हम
हिम्मत को हार...
चाहा जागें
पर हम सोये
भूल-भुलैयां में
फंस खोये
मृगतृष्णा में
लालच ने
भटकाया
कर लाचार॥
नेह नर्मदा
नहा न पाये
कलुष-कुटिलता
बहा न पाये
काला-पीला
करो सिखाता
दुनिया का बाज़ार...
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बहुत सुन्दर रचना....बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
neh narmada......................
जवाब देंहटाएंwah salil ji umda rachna ke liye badhai.
Waah !!! Kya kahun...mugdh ho gayi,nihshabd ho gayi...
जवाब देंहटाएंAtisundar rachna...
शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंहौसला नव दिया.
घाट पर गीत के-
आचमन तो किया.