गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

नवगीत: राह हेरते समय न कटता...

नवगीत:

राह हेरते
समय न कटता...

*

पल दो पल भी
साथ तुम्हारा
पाने मन
तरसा करता है.
विरह तप्त
मन के मरुथल पर
मिलन मेघ
बरसा करता है.

भू की
रूप छटा नित हेरे-
बादल-मनुआ
ललच बरसता.
राह हेरते
समय न कटता...

*

नहीं समय से
पहले कुछ हो.
और न कुछ भी
बाद समय के.
नेह नर्मदा की
लहरों में
उठते हैं
तूफ़ान विलय के.

तन को मन का
मन को तन का
मिले न यदि
स्पर्श अखरता.
राह हेरते
समय न कटता...

*

अगर न दूरी
हो तो कैसे
मूल्य ज्ञात हो
अपनेपन का.
अगर अधूरी
रहें न आसें
कौन बताये
स्नेह स्वजन का?

शूल फूल में
फूल शूल में,
'सलिल' अनकहा
रिश्ता पलता.
राह हेरते
समय न कटता...

*
-divyanarmada.blogspot.com

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर नव-गीत रचा है, आचार्य जी आपने!
    धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

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  2. दीपावली पर्व की हार्दिक ढेरो शुभकामना

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  3. बहुत उम्दा और सुन्दर गीत...नव गीत..बधाई.

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  4. राह हेरते समय न कटता, मन को छूने वाली रचना है। दीपावली की शुभकामनाएं।

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  5. behatareen rachna, deepawali aur dhanteras ki hardik shubhkaamnayen ishwar apke hriday ko adhyatm ke deepak ke prakash se prakashit karen.

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  6. रूप चन्द्र का देखकर, 'सलिल' हुआ है धन्य.
    रमा संग पायें सतत, शारद कृपा अनन्य..

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  7. समयचक्र रुकता नहीं, दीपक जाने सत्य.
    श्री गणेश-लक्ष्मी रहें, करते कृपा अनित्य..

    उड़न तश्तरी जा सके, अगर समय के पार.
    'सलिल' दिवाली हो वहाँ, खुशियाँ,मिलें हज़ार.

    कुसुम सुरभि से सुवासित, हो आँगन घर द्वार.
    दिए दीवाली के करें, अभिनन्दन सौ बार..

    दीपोत्सव का हर दिया, बाँटे अमित उजास.
    संगीता हो ज़िन्दगी, सफलित सभी प्रयास.

    दीवाली का दिया है, अजित सलिल यह सत्य.
    अमित उजास बिखेरता, खुशियाँ लुटा अनित्य..

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  8. स्वप्न 'सलिल' साकार हो, सार्थक सभी प्रयास.
    दीवाली हो हर निशा, प्रति पल मिले उजास.

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