दिव्य सूर्य-रश्मियाँ,
भव्य भाव भूमियाँ...
श्वास-आस दायिका,
रास-लास नायिका।
त्रास-ह्रास हरंकर-
उजास वर प्रदायिका।
ज्ञान-ध्यान-मानमय
सहज-सृजित सृष्टियाँ...
कमलनयन ध्यायिका,
विशेष शेष शायिका।
अनंत-दिग्दिगंत की,
अनादि आख्ययिका।
मूर्तिमंत नव बसंत
कंत श्याम तामिया...
गीत-ग़ज़ल गायिका,
नवल नाद नायिका।
श्रवण-मनन-सृजन-कथन,
व्यक्त व्याख्यायिका।
श्रम-लगन-समर्पण की-
चाह-राह दामिया...
सतत-प्रगत धाविका,
विगतागत वाहिका।
संग अपार 'सलिल'-धार
आर-पार नाविका।
रीत-गीत-प्रीतपरक
दृष्टादृष्ट दृष्टियाँ...
प्रणय-गंध सात्विका
विलय-बंध प्राप्तिका।
श्वास-रंध्र आपूरित-
मलयानिल आप्तिका।
संचारित-सुविचारित
आचारित ऊर्मियाँ
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anupam rachna.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल साहब,
जवाब देंहटाएंअपने आप में पूर्ण भावात्मक शब्दकोश हैं आप।
फ़ख़्र की बात है, जो आपका ब्लॉगजगत को आशीर्वाद मिला हुआ है। वास्तव में अद्भभुत रचना।
रचना को पढ़ अभी मेरी जो अवस्था है ...अब क्या कहूँ...लग रहा है अब सागर के सम्मुख चुल्लू भर जल ले उसे क्या अर्घ्य दूं....
जवाब देंहटाएंमंत्रमुग्ध करती अद्वितीय अप्रतिम रचना !!
आचार्यवर की लेखनी को नमन !