नवगीत:
संजीव 'सलिल' 
अपना हर पल 
है हिन्दीमय 
एक दिवस 
क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें 
नित्य अंग्रेजी 
जो वे 
एक दिवस जय गाएँ...
निज भाषा को
कहते पिछडी. 
पर भाषा 
उन्नत बतलाते. 
घरवाली से 
आँख फेरकर
देख पडोसन को 
ललचाते. 
ऐसों की 
जमात में बोलो,
हम कैसे 
शामिल हो जाएँ?...
हिंदी है
दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक 
की भाषा. 
जिसकी ऐसी 
गलत सोच है,
उससे क्या 
पालें हम आशा?
इन जयचंदों  
की खातिर
हिंदीसुत
पृथ्वीराज बन जाएँ...
ध्वनिविज्ञान-
नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में  
माने जाते.
कुछ लिख,
कुछ का कुछ पढने की 
रीत न हम
हिंदी में पाते. 
वैज्ञानिक लिपि,
उच्चारण भी 
शब्द-अर्थ में 
साम्य बताएँ...
अलंकार, 
रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की
बिम्ब अनूठे. 
नहीं किसी 
भाषा में  मिलते,
दावे करलें 
चाहे झूठे. 
देश-विदेशों में 
हिन्दीभाषी 
दिन-प्रतिदिन 
बढ़ते जाएँ...
अन्तरिक्ष में 
संप्रेषण की 
भाषा हिंदी 
सबसे उत्तम. 
सूक्ष्म और 
विस्तृत वर्णन में
हिंदी है 
सर्वाधिक 
सक्षम.
हिंदी भावी 
जग-वाणी है 
निज आत्मा में 
'सलिल' बसाएँ...
********************
-दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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बहुत ज़ोरदार लिखा है सलिल जी।बधाई स्वीकरें। सही बात है घर वाली से बाहर वाली अच्छी लगती है किंतु अपने माता पिता को भूल जाने वाला क्या कहलाता है? क्या बताएं?
जवाब देंहटाएंvyangya se paripurn sachchaai, bahut khoob likha hai, badhaai.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा गीत!!
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.
जय हिन्दी!