नव गीत:
आचार्य संजीव 'सलिल'
जिनको कीमत नहीं
समय की
वे न सफलता
कभी वरेंगे...
*
समय न थमता,
समय न झुकता.
समय न अड़ता,
समय न रुकता.
जो न समय की
कीमत जाने,
समय नहीं
उसको पहचाने.
समय दिखाए
आँख तनिक तो-
ताज- तख्त भी
नहीं बचेंगे.....
*
समय सत्य है,
समय नित्य है.
समय तथ्य है,
समय कृत्य है.
साथ समय के
दिनकर उगता.
साथ समय के
शशि भी ढलता.
हो विपरीत समय
जब उनका-
राहु-केतु बन
ग्रहण डसेंगे.....
*
समय गिराता,
समय उठाता.
समय चिढाता,
समय मनाता.
दुर्योधन-धृतराष्ट्र
समय है.
जसुदा राधा कृष्ण
समय है.
शूल-फूल भी,
गगन-धूल भी
'सलिल' समय को
नमन करेंगे...
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समय बहुत बलवान । सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमिथिला सँग मिथलेश ने, झेला समय-प्रभाव.
जवाब देंहटाएंसुख-दुःख सम होकर सहा, रखकर संत-स्वभाव..
समय की ताकत को पहचानना ही होगा..सुन्दर संदेश देता नव गीत..बधाई एवं आभार!
जवाब देंहटाएंजिनको कीमत नहीं समय की
जवाब देंहटाएंवे न सफलता कभी वरेंगे। बहुत सुंदर गीत बन पडा है। बधाई।
उड़न तश्तरी समय का जाने सच्चा मोल.
जवाब देंहटाएंहर उड़ान होती 'सलिल', सफल चले पग तोल..
धन्यवाद.
समय न सीमित, समय अमित है.
जवाब देंहटाएंसमय-साथ जो चले, अजित है.
समय पृष्ठ पर कर हस्ताक्षर-
श्रम-सीकर से, 'सलिल' अमित है.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकल्याणकारी सुन्दर सन्देश देती अद्वितीय अतिसुन्दर रचना....वाह !!!
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