कहीं धूप क्यों?,
कहीं छाँव क्यों??...
सबमें तेरा
अंश समाया,
फ़िर क्यों
भरमाती है काया?
जब पाते तब-
खोते हैं क्यों?
जब खोते तब
पाते पाया।
अपने चलते
सतत दाँव क्यों?...
नीचे-ऊपर,
ऊपर-नीचे।
झूलें सब
तू डोरी खींचे,
कोई डरता,
कोई हँसता।
कोई रोये
अँखियाँ मींचे।
चंचल-घायल
हुए पाँव क्यों?...
तन पिंजरे में
मन बेगाना।
श्वास-आस का
ताना-बाना।
बुनता-गुनता
चुप सर धुनता।
तू परखे, दे
संकट नाना।
सूना पनघट,
मौन गाँव क्यों?...
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मौन गाँव क्यों....एक गहन प्रश्न उठाता गीत..बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंसलिल जी
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ रचना। बधाई।
soona panghat, maun maun gaaon kyun.
जवाब देंहटाएंwah, anupam rachna, verma ji badhai.
दार्शनिकता का पुट लिए हुए ,एक खूबसूरत नवगीत
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