नवगीत:
ढाई आखर
संजीव
*
जिन्स बना
बिक रहा आजकल
ढाई आखर।।
.
दाँत दूध के टूट न पाये
पर वयस्क हैं।
नहीं सुंदरी नर्स इसलिए
अनमयस्क हैं।
चूस रहे अंगूठा लेकिन
आँख मारते-
बाल भारती पढ़ न सकें
डेटिंग परस्त हैं।
हर उद्यान
काम-क्रीड़ा हित
इनको बाखर।
जिन्स बना
बिक रहा आजकल
ढाई आखर।।
.
मकरध्वज घुट्टी में शायद
गयी पिलायी।
वात्स्यायन की खोज
गर्भ में गयी सुनायी।
मान देह को माटी; माटी से
मिलते हैं-
कीचड़ किया, न शतदल कलिका
गयी खिलायी।
मन अनजाना
केवल तन; इनको
जलसाघर।
जिन्स बना
बिक रहा आजकल
ढाई आखर।
.
ढाई आखर
संजीव
*
जिन्स बना
बिक रहा आजकल
ढाई आखर।।
.
दाँत दूध के टूट न पाये
पर वयस्क हैं।
नहीं सुंदरी नर्स इसलिए
अनमयस्क हैं।
चूस रहे अंगूठा लेकिन
आँख मारते-
बाल भारती पढ़ न सकें
डेटिंग परस्त हैं।
हर उद्यान
काम-क्रीड़ा हित
इनको बाखर।
जिन्स बना
बिक रहा आजकल
ढाई आखर।।
.
मकरध्वज घुट्टी में शायद
गयी पिलायी।
वात्स्यायन की खोज
गर्भ में गयी सुनायी।
मान देह को माटी; माटी से
मिलते हैं-
कीचड़ किया, न शतदल कलिका
गयी खिलायी।
मन अनजाना
केवल तन; इनको
जलसाघर।
जिन्स बना
बिक रहा आजकल
ढाई आखर।
.
रिश्ते-नाते वस्त्र सरीखे
रोज बदलते।
कहें देह संपत्ति
पंक में कूद फिसलते।
माता-पिता बोझ अनचाहा
छूटे पीछा-
मिले विरासत में दौलत;
कर्तव्य न रुचते।
खोज रहे हैं
साथी; साथी
माता-पिता बोझ अनचाहा
छूटे पीछा-
मिले विरासत में दौलत;
कर्तव्य न रुचते।
खोज रहे हैं
साथी; साथी
बदल-बदलकर।
जिन्स बना
बिक रहा आजकल
ढाई आखर।
.
जिन्स बना
बिक रहा आजकल
ढाई आखर।
.
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