मुक्तिका:
चल रहे
चल रहे पर अचल हम हैं
गीत भी हैं, ग़ज़ल हम हैं
गीत भी हैं, ग़ज़ल हम हैं
आप चाहें कहें मुक्तक
नकल हम हैं, असल हम हैं
नकल हम हैं, असल हम हैं
हैं सनातन, चिर पुरातन
सत्य कहते नवल हम हैं
सत्य कहते नवल हम हैं
कभी हैं बंजर अहिल्या
कभी बढ़ती फ़सल हम हैं
कभी बढ़ती फ़सल हम हैं
मन-मलिनता दूर करती
काव्य सलिल धवल हम हैं
काव्य सलिल धवल हम हैं
जो न सुधरी आज तक वो
आदमी की नसल हम हैं
आदमी की नसल हम हैं
गिर पड़े तो यह न सोचो
उठ न सकते निर्बल हम हैं
उठ न सकते निर्बल हम हैं
ठान लें तो नियति बदलें
धरा के सुत सबल हम हैं
धरा के सुत सबल हम हैं
कह रही है सलिल दुनिया बता दो ‘संजीव’ हम हैं
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