मंगलवार, 5 मई 2015

muktika: aap se aap -sanjiv

मुक्तिका:

आप से आप ही

आप से आप ही ghazal
Photo by DBduo Photography 
आप से आप ही टकरा रहा है
आप ही आप जी घबरा रहा है
धूप ने छाँव से कर दी बगावत
चाँद से सूर्य क्यों घबरा रहा है?
क्यों फ़ना हो रहा विश्वास कहिए?
दुपहरी में अँधेरा छा रहा है
लोक को था भरोसा हाय जिन पर
लोक उनसे ही धोखा खा रहा है
फ़िज़ाओं में घुली है गुनगुनाहट
ख़त्म वनवास होता जा रहा है
हाथ में हाथ लेकर जो चले थे
उन्हीं का हाथ छूटा जा रहा है
बुहारू ले बुहारो आप आँगन
स्वार्थ कचरा बहुत बिखरा रहा है

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