रविवार, 5 फ़रवरी 2012

बासंती दोहा गीत... फिर आया ऋतुराज बसंत संजीव 'सलिल'


 

 


बासंती दोहा गीत...
फिर आया ऋतुराज बसंत
संजीव 'सलिल' 
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*
फिर आया ऋतुराज बसंत, 
प्रकृति-पुरुष हिल-मिल खिले
विरह--शीत का अंत....
*
आम्र-मंजरी मोहती, 
गौर-बौरा मुग्ध.
रति-रतिपति ने झूमकर-
किया शाप को दग्ध..
नव-कोशिश की कामिनी
वरे सफलता कंत...
*
कुहू-कुहू की टेर सुन, 
शुक भरमाया खूब. 
मिली लजाई सारिका ,
प्रेम-सलिल में डूब..
कसे कसौटी पर गए
अब अविकारी संत...
*
भोर सुनहरी गुनगुनी,
निखरी-बिखरी धूप.
शयन कक्ष में देख चुप-
देख भामिनी-भूप..
'सलिल' वरे अद्वैत जग,
नहीं द्वैत में तंत...
*****


                                                                                          

 

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