फिर आया ऋतुराज बसंत
संजीव 'सलिल'
संजीव 'सलिल'
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फिर आया ऋतुराज बसंत,
प्रकृति-पुरुष हिल-मिल खिले
विरह--शीत का अंत....
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फिर आया ऋतुराज बसंत,
प्रकृति-पुरुष हिल-मिल खिले
विरह--शीत का अंत....
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आम्र-मंजरी मोहती,
गौर-बौरा मुग्ध.
रति-रतिपति ने झूमकर-
किया शाप को दग्ध..
नव-कोशिश की कामिनी
वरे सफलता कंत...
रति-रतिपति ने झूमकर-
किया शाप को दग्ध..
नव-कोशिश की कामिनी
वरे सफलता कंत...
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कुहू-कुहू की टेर सुन,
शुक भरमाया खूब.
मिली लजाई सारिका ,
प्रेम-सलिल में डूब..
कसे कसौटी पर गए
अब अविकारी संत...
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प्रेम-सलिल में डूब..
कसे कसौटी पर गए
अब अविकारी संत...
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भोर सुनहरी गुनगुनी,
निखरी-बिखरी धूप.
शयन कक्ष में देख चुप-
देख भामिनी-भूप..
शयन कक्ष में देख चुप-
देख भामिनी-भूप..
'सलिल' वरे अद्वैत जग,
नहीं द्वैत में तंत...
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नहीं द्वैत में तंत...
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