गीत:
कहे कहानी, आँख का पानी.
संजीव 'सलिल'
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कहे कहानी, आँख का पानी.
की सो की, मत कर नादानी...
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बरखा आई, रिमझिम लाई.
नदी नवोढ़ा सी इठलाई..
ताल भरे दादुर टर्राये.
शतदल कमल खिले मन भाये..
वसुधा ओढ़े हरी चुनरिया.
बीरबहूटी बनी गुजरिया..
मेघ-दामिनी आँख मिचोली.
खेलें देखे ऊषा भोली..
संध्या-रजनी सखी सुहानी.
कहे कहानी, आँख का पानी...
*
पाला-कोहरा साथी-संगी.
आये साथ, करें हुडदंगी..
दूल्हा जाड़ा सजा अनूठा.
ठिठुरे रवि सहबाला रूठा..
कुसुम-कली पर झूमे भँवरा.
टेर चिरैया चिड़वा सँवरा..
चूड़ी पायल कंगन खनके.
सुन-गुन पनघट के पग बहके.
जो जी चाहे करे जवानी.
कहे कहानी, आँख का पानी....
*
अमन-चैन सब हुई उड़न छू.
सन-सन, सांय-सांय चलती लू..
लंगड़ा चौसा आम दशहरी
खाएँ ख़ास न करते देरी..
कूलर, ए.सी., परदे खस के.
दिल में बसी याद चुप कसके..
बन्ना-बन्नी, चैती-सोहर.
सोंठ-हरीरा, खा-पी जीभर..
कागा सुन कोयल की बानी.
कहे कहानी, आँख का पानी..
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divyanarmada.blogspot.com
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सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंये ऋतु वर्णन बहुत भाया ।
जवाब देंहटाएंअद्भुत !
जवाब देंहटाएंअति मनोरम !
जितनी प्रशंसा करूं …वो कम !
प्रणाम आचार्यश्री !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
वसुधा ओढे हरी वुनरिया
जवाब देंहटाएंवीर्बहुटी बनी गुजरिया। वाह यक़्ही तो है मेरे ब्लाग का भी नाम।्रचना की प्रशंसा के लिये हमेशा की तरह शब्द? नदारद हैं। बधाई और धन्यवाद।
सुन्दर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर.
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