स्मृति गीत / शोक गीत-
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
वे
आसमान की
छाया थे.
वे
बरगद सी
दृढ़ काया थे.
थे-
पूर्वजन्म के
पुण्य फलित
वे,
अनुशासन
मन भाया थे.
नव
स्वार्थवृत्ति लख
लगता है
भवितव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
वे
हर को नर का
वन्दन थे.
वे
ऊर्जामय
स्पंदन थे.
थे
संकल्पों के
धनी-धुनी-
वे
आशा का
नंदन वन थे.
युग
परवशता पर
दृढ़ प्रहार.
गंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
वे
शिव-स्तुति
का उच्चारण.
वे राम-नाम
भव-भय तारण.
वे शांति-पति
वे कर्मव्रती.
वे
शुभ मूल्यों के
पारायण.
परसेवा के
अपनेपन के
मंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
बुधवार, 23 सितंबर 2009
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बहुत ही बढिया कविता......बधाई!!!!!!
जवाब देंहटाएंआचार्य जी,
जवाब देंहटाएं..........
मौन और निशब्द......
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
bahut hi sunder kavita hai
जवाब देंहटाएंcongrtulation
sanjay
haryana