मुक्तक:
हम एक हों
हम एक हों, हम नेक हों, बल दो हमें जगदंबिके
नित प्रात हो हम साथ हों नत माथ हो जगवन्दिते,
नित भोर भारत-भारती वर दें हमें सब हों सुखी
असहाय के प्रति हों सहायक हो न कोई भी दुखी|
नित प्रात हो हम साथ हों नत माथ हो जगवन्दिते,
नित भोर भारत-भारती वर दें हमें सब हों सुखी
असहाय के प्रति हों सहायक हो न कोई भी दुखी|
मत राज्य दो मत स्वर्ग दो मत जन्म दो हमको पुन:
मत नाम दो मत दाम दो मत काम दो हमको पुन:,
यदि दो हमें बलिदान का यश दो, न हों ज़िन्दा रहें
कुछ काम मातु! न आ सके नर हो, न शर्मिंदा रहें|
मत नाम दो मत दाम दो मत काम दो हमको पुन:,
यदि दो हमें बलिदान का यश दो, न हों ज़िन्दा रहें
कुछ काम मातु! न आ सके नर हो, न शर्मिंदा रहें|
तज दें सभी अभिमान को हर आदमी गुणवान हो
हँस दे लुटा निज ज्ञान को हर लेखनी मतिमान हो,
तरु हों हरे वसुधा हँसे नदियाँ सदा बहती रहें
कर आरती माँ भारती! हम हों सुखी रसखान हों|
हँस दे लुटा निज ज्ञान को हर लेखनी मतिमान हो,
तरु हों हरे वसुधा हँसे नदियाँ सदा बहती रहें
कर आरती माँ भारती! हम हों सुखी रसखान हों|
फहरा ध्वजा हम शीश को अपने रखें नत हो उठा
मतभेद को मनभेद को पग के तले कुचलें बिठा,
कर दो कृपा वर दो जया!हम काम भी कुछ आ सकें
तव आरती माँ भारती! हम एक होकर गा सकें|
मतभेद को मनभेद को पग के तले कुचलें बिठा,
कर दो कृपा वर दो जया!हम काम भी कुछ आ सकें
तव आरती माँ भारती! हम एक होकर गा सकें|
[छंद: हरिगीतिका, सूत्र: प्रति पंक्ति ११२१२ X ४]
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