मंगलवार, 5 मई 2015

nav geet: pashupati nath tumahare rahte -sanjiv

नवगीत:

पशुपतिनाथ! तुम्हारे रहते

पशुपतिनाथ! तुम्हारे रहते geet
Photo by Hey Paul 
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
वसुधा मैया भईं कुपित
डोल गईं चट्टानें
किसमें बूता
धरती कब
काँपेगी अनुमाने?
देख-देख भूडोल
चकित क्यों?
सीखें रहना साथ,
अनसमझा भूकम्प न हो अब
मानवता का काल
पृथ्वी पर भूचाल,
हुए, हो रहे, सदा होएंगे
हम जीना सीखेंगे या
हो नष्ट बिलख रोएँगे?
जीवन शैली गलत हमारी
करे प्रकृति से बैर
रहें सुरक्षित पशु-पक्षी, तरु
नहीं हमारी खैर,
जैसी करनी
वैसी भरनी
फूट रहा है माथ
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
टैक्टानिक हलचल को समझें
हटें-मिलें भू-प्लेटें
ऊर्जा विपुल
मुक्त हो फैले
भवन तोड़, भू मेटें,
रहे लचीला
तरु न टूटे
अड़ियल भवन चटकता,
नींव न जो
मज़बूत रखे
वह जीवन-शैली खोती
उठी अकेली जो
ऊँची मीनार
भग्न हो रोती,
वन हरिया दें, रुके भूस्खलन
कम हो तभी विनाश,
बंधन हो मज़बूत, न ढीले
रहें हमारे पाश,
छूट न पायें
कसकर थामें
‘सलिल’ हाथ में हाथ
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें