शुक्रवार, 27 जून 2014

chhand salila: shuddh dhvani chhand -sanjiv


छंद सलिला: ​​​

​शुद्ध ध्वनि छंद

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १८-८-८-६, पदांत गुरु

लक्षण छंद:
लाक्षणिक छंद  है / शुद्धध्वनि पद / अंत करे गुरु / यश भी दे  
यति रहे अठारह / आठ आठ छह, / विरुद गाइए / साहस ले
चौकल में जगण न / है वर्जित- करि/ए प्रयोग जब / मन चाहे
कह-सुन वक्ता-श्रो/ता हर्षित, सम / शब्द-गंग-रस / अवगाहे

उदाहरण:
१. बज उठे नगाड़े / गज चिंघाड़े / अंबर फाड़े / भोर हुआ
    खुर पटकें घोड़े / बरबस दौड़े / संयम छोड़े / शोर हुआ
    गरजे सेनानी / बल अभिमानी / मातु भवानी / जय रेवा
    ले धनुष-बाण सज / बड़ा देव भज / सैनिक बोले / जय देवा
   
    कर तिलक भाल पर / चूड़ी खनकीं / अँखियाँ छलकीं / वचन लिया    
    'सिर अरि का लेना / अपना देना / लजे न माँ का / दूध पिया'
    ''सौं मातु नरमदा / काली मैया / यवन मुंड की / माल चढ़ा
    लोहू सें भर दौं / खप्पर तोरा / पिये जोगनी / शौर्य बढ़ा''

    सज सैन्य चल पडी / शोधकर घड़ी / भेरी-घंटे / शंख बजे
    दिल कँपे मुगल के / धड़-धड़ धड़के / टँगिया सम्मुख / प्राण तजे
    गोटा जमाल था / घुला ताल में / पानी पी अति/सार हुआ
    पेड़ों पर टँगे / धनुर्धारी मा/रें जीवन दु/श्वार हुआ

    वीरनारायण अ/धार सिंह ने / मुगलों को दी / धूल चटा
    रानी के घातक / वारों से था / मुग़ल सैन्य का / मान घटा
    रूमी, कैथा भो/ज, बखीला, पं/डित मान मुबा/रक खां लें  
    डाकित, अर्जुनबै/स, शम्स, जगदे/व, महारख सँग / अरि-जानें
   
    पर्वत से पत्थर / लुढ़काये कित/ने हो घायल / कुचल मरे-
    था नत मस्तक लख / रण विक्रम, जय / स्वप्न टूटते / हुए लगे
    बम बम भोले, जय / शिव शंकर, हर / हर नरमदा ल/गा नारा
    ले जान हथेली / पर गोंडों ने / मुगलों को बढ़/-चढ़ मारा  
   
    आसफ खां हक्का / बक्का, छक्का / छूटा याद हु/ई मक्का
    सैनिक चिल्लाते / हाय हाय अब / मरना है बिल/कुल पक्का  
    हो गयी साँझ निज / हार जान रण / छोड़ शिविर में / जान बचा
    छिप गया: तोपखा/ना बुलवा, हो / सुबह चले फिर / दाँव नया

    रानी बोलीं "हम/ला कर सारी / रात शत्रु को / पीटेंगे
    सरदार न माने / रात करें आ/राम, सुबह रण / जीतेंगे
    बस यहीं हो गयी / चूक बदनसिंह / ने शराब थी / पिलवाई
    गद्दार भेदिया / देश द्रोह कर / रहा न किन्तु श/रम आई
   
    सेनानी अलसा / जगे देर से / दुश्मन तोपों / ने घेरा
    रानी ने बाजी / उलट देख सो/चा वन-पर्वत / हो डेरा
    बारहा गाँव से / आगे बढ़कर / पार करें न/र्रइ नाला
    नागा पर्वत पर / मुग़ल न लड़ पा/येंगे गोंड़ ब/नें ज्वाला

    सब भेद बताकर / आसफ खां को / बदनसिंह था / हर्षाया  
    दुर्भाग्य घटाएँ / काली बनकर / आसमान पर / था छाया
    डोभी समीप तट / बंध तोड़ मुग/लों ने पानी / दिया बहा
    विधि का विधान पा/नी बरसा, कर / सकें पार सं/भव न रहा

    हाथी-घोड़ों ने / निज सैनिक कुच/ले, घबरा रण / छोड़ दिया
    मुगलों ने तोपों / से गोले बर/सा गोंडों को / घेर लिया
    सैनिक घबराये / पर रानी सर/दारों सँग लड़/कर पीछे
    कोशिश में थीं पल/टें बाजी, गिरि / पर चढ़ सकें, स/मर जीतें

    रानी के शौर्य-पराक्रम ने दुश्मन का दिल दहलाया था
    जा निकट बदन ने / रानी पर छिप / घातक तीर च/लाया था  
    तत्क्षण रानी ने / खींच तीर फें/का, जाना मु/श्किल बचना
    नारायण रूमी / भोज बच्छ को / चौरा भेज, चु/ना मरना

    बोलीं अधार से / 'वार करो, लो / प्राण, न दुश्मन / छू पाये'
    चाहें अधार लें / उन्हें बचा, तब / तक थे शत्रु नि/कट  आये
    रानी ने भोंक कृ/पाण कहा: 'चौरा जाओ' फिर प्राण तजा  
    लड़ दूल्हा-बग्घ श/हीद हुए, सर/मन रानी को / देख गिरा

    भौंचक आसफखाँ / शीश झुका, जय / पाकर भी थी / हार मिली
    जनमाता दुर्गा/वती अमर, घर/-घर में पुजतीं / ज्यों देवी
    पढ़ शौर्य कथा अब / भी जनगण, रा/नी को पूजा / करता है
    जनहितकारी शा/सन खातिर नित / याद उन्हें ही / करता है

    बारहा गाँव में / रानी सरमन /बग्घ दूल्ह के / कूर बना
    ले कंकर एक र/खे हर जन, चुप / वीर जनों को / शीश नवा
    हैं गाँव-गाँव में / रानी की प्रति/माएँ, हैं ता/लाब बने
    शालाओं को भी , नाम मिला, उन/का- देखें ब/च्चे सपने

   नव भारत की नि/र्माण प्रेरणा / बनी आज भी / हैं रानी
   रानी दुर्गावति / हुईं अमर, जन / गण पूजे कह / कल्याणी
   नर्मदासुता, चं/देल-गोंड की / कीर्ति अमर, दे/वी मैया
   जय-जय गाएंगे / सदियों तक कवि/, पाकर कीर्ति क/था-छैंया      
                                  *********
टिप्पणी: २४ जून १५६४ रानी दुर्गावती शहादत दिवस, कूर = समाधि, युद्ध का मूल कारण २२ वर्षीय अकबर द्वारा ४० वर्षीय विधवा रानी को अपने हरम में मिलाने की इच्छ का पालन न होना, दूरदर्शन पर दिखाई जा रही अकबर की छद्म महानता की पोल रानी की संघर्ष कथा खोलती है.
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें