बिदाई गीत:
अलविदा दो हजार दस...
संजीव 'सलिल'
*
अलविदा दो हजार दस
स्थितियों पर
कभी चला बस
कभी हुए बेबस.
अलविदा दो हजार दस...
तंत्र ने लोक को कुचल
लोभ को आराधा.
गण पर गन का
आतंक रहा अबाधा.
सियासत ने सिर्फ
स्वार्थ को साधा.
होकर भी आउट न हुआ
भ्रष्टाचार पगबाधा.
बहुत कस लिया
अब और न कस.
अलविदा दो हजार दस...
लगता ही नहीं, यही है
वीर शहीदों और
सत्याग्रहियों की नसल.
आम्र के बीज से
बबूल की फसल.
मंहगाई-चीटी ने दिया
आवश्यकता-हाथी को मसल.
आतंकी-तिनका रहा है
सुरक्षा-पर्वत को कुचल.
कितना धंसेगा?
अब और न धंस.
अलविदा दो हजार दस...
*******************
शुभाकांक्षा :
विनय यही है आपसे सुनिए हे सलिलेश!
रहें आपके द्वार पर खुशियाँ अगिन हमेश..
नये वर्ष में कट सकें भव-बाधा के पाश.
अँगना में फूलें 'सलिल' यश के पुष्प पलाश..
************
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
सलिल जी गीत बहुत अच्छा लगा। आपको भी नव वर्ष की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसलिल जी ! एकदम सटीक और सार्थक गीत बहुत ही अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं.
बहुत अच्छा गीत ....
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनायें
बहुत ही सुन्दर गीत ...आभार
जवाब देंहटाएंहर पल यही है दिल की दुआ आपके लिए
खुशियों भरा हो साल नया आपके लिए
महकी हुई उमंग भरी हो हर इक सुबह
चाहत के गुल से पथ हो सजा आपके लिए
नव वर्ष 2011 की अनेक शुभकामनाएं ! यह नव वर्ष आपके जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता प्रदान करे ।
जवाब देंहटाएं