शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

गीत : प्यार किसे मैं करता हूँ --- संजीव 'सलिल'

गीत :                           
प्यार किसे मैं करता हूँ
संजीव 'सलिल'
*
बतलाने की नहीं जरूरत प्यार किसे मैं करता हूँ.
जीता हूँ मैं इन्हें देखकर, कैसे कह दूँ मरता हूँ??
*
प्यार किया माता को मैंने, बहिनों को भी प्यार किया.
भाभी पर की जान निछावर, सखियों पर दिल हार दिया..
खुद को खो पत्नि को पाया, सलहज-साली पर रीझा.
बेटी राजदुलारी की छवि दिल में हर पल धरता हूँ..
बतलाने की नहीं जरूरत प्यार किसे मैं करता हूँ.
जीता हूँ मैं इन्हें देखकर, कैसे कह दूँ मरता हूँ??
*
प्यार हमारी परंपरा है, सकल विश्व में नीड़ रहा.
सारी वसुधा ही कुटुंब है, नहीं किसी को गैर कहा..
पिता, बंधु, जीजा, साले, साढू, मित्रों बिन चैन नहीं.
बेटा सब सँग कंधा देगा, यह जीवन-पथ वरता हूँ.
बतलाने की नहीं जरूरत प्यार किसे मैं करता हूँ.
जीता हूँ मैं इन्हें देखकर, कैसे कह दूँ मरता हूँ??
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जामाता बेटा बनकर, सुतवधु बेटी बन आयेगी.
भावी पीढ़ी परंपरा को युग अनुरूप बनायेगी..
पश्चिम, उत्तर, दक्षिण को, पूरब निज हृदय बसाएगा.
परिवर्तन शुभ-सुंदर निर्झर, स्नेह-सलिल बन झरता हूँ.
बतलाने की नहीं जरूरत प्यार किसे मैं करता हूँ.
जीता हूँ मैं इन्हें देखकर, कैसे कह दूँ मरता हूँ??
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