गीत:
हिन्दी ममतामय मैया है...
संजीव 'सलिल'
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हिंदी ममतामय मैया है
मत इससे खिलवाड़ करो...
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सूर कबीर रहीम देव
तुलसी से बेटों की मैया.
खुसरो बरदाई मीरां
जगनिक खेले इसकी कैंया.
घाघ भड्डरी ईसुरी गिरिधर
जगन्नाथ भूषण मतिमान.
विश्वनाथ श्री क्षेमचंद्र
जयदेव वृन्द लय-रस की खान.
जायसी रायप्रवीण बिहारी
सेनापति बन लाड़ करो.
हिंदी ममतामय मैया है
मत इससे खिलवाड़ करो...
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बिम्ब प्रतीक व्याकरण पिंगल
क्षर-अक्षर रसलीन रहो.
कर्ताकारक कर्म क्रिया उपयुक्त
न रख क्यों दीन रहो?
रसनिधि शब्द-शब्द चुनकर
बुनकर अभिनव ताना-बाना.
बन जाओ रसखान काव्य की
गगरी निश-दिन छलकाना.
तत्सम-तद्भव लगे डिठौना
किन्तु न तिल को ताड़ करो.
हिंदी ममतामय मैया है
मत इससे खिलवाड़ करो...
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जिस ध्वनि का जैसा उच्चारण
वैसा लिखना हिन्दी है.
जैसा लिखना वैसा पढ़ना
वही समझना हिंदी है.
मौन न रहता कोई अक्षर,
गिरता कोई हर्फ़ नहीं.
एक वर्ण के दो उच्चारण
दो उच्चारो- वर्ण नहीं.
करो 'सलिल' पौधों का रोपण,
अब मत रोपा झाड़ करो.
हिंदी ममतामय मैया है
मत इससे खिलवाड़ करो...
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
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वाह हिंदी के सम्मान में बहुत ही सुंदर कविता ।
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