शनिवार, 10 जुलाई 2010

नव गीत: स्नान कर रहा..... संजीव वर्मा 'सलिल'

नव गीत:
स्नान कर रहा.....
संजीव वर्मा 'सलिल'
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शतदल, पंकज, कमल, सूर्यमुख
श्रम-सीकर से                                                                              
स्नान कर रहा.
शूल चुभा
सुरभित गुलाब का फूल-
कली-मन म्लान कर रहा...
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जंगल काट, पहाड़ खोदकर                                                                   
ताल पाटता महल न जाने.
भू करवट बदले तो पल में-
मिट जायेंगे सब अफसाने..
सरवर सलिल समुद्र नदी में
खिल इन्दीवर कुई बताता
हरिपद-श्रीकर, श्रीपद-हरिकर
कृपा करें पर भेद न माने..

कुंद कुमुद क्षीरज नीरज नित
सौगन्धिक का
गान कर रहा.
सरसिज, अलिप्रिय, अब्ज, रोचना
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.....
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पुण्डरीक सिंधुज वारिज                  
तोयज उदधिज
नव आस जगाता.
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता..
पनघट चौपालों अमराई
खलिहानों से अपनापन रख-
नीला लाल सफ़ेद जलज हँस
सुख-दुःख एक सदृश बतलाता.

उत्पल पुंग पद्म राजिव
कब निर्मलता का  
भान कर रहा.
जलरुह अम्बुज अम्भज कैरव 
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.....
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बिसिनी नलिन सरोज कोकनद
जाति-धर्म के भेद न मानें.
मन मिल जाए ब्याह रचायें-
एक गोत्र का खेद न जानें..
दलदल में पल दल न बनाते,
ना पंचायत, ना चुनाव ही.
शशिमुख-रविमुख रह अमिताम्बुज
बैर नहीं आपस ठानें..
अमलतास हो या पलाश
पुहकर पुष्कर का गान कर रहा.
सौगन्धिक पुन्नाग अलोही
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.....
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चित्र : कमलासना, कमलनयन, पद कमल,  कमल मुखी के कर कमलों की कमल मुद्रा, कमल-जड़, कमल-बीज, कमल-नाल (मृणाल), कमल- पत्र, कमल-जड़ के टुकड़े, कमल-गट्टा.
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

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