संजीव वर्मा 'सलिल'
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
शांति-शिष्टता,
धैर्य-भद्रता,
जीवट की पहचान.
शांत सतह के
नीचे हलचल,
मचल रहे अरमान.
श्वेत-शयन लख
यह मत समझो
रंगों से अनजान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
ऊपर-नीचे
सब जानें पर
ऊँच-नीच से दूर.
दिक्-दिगंत पर
नजर जमाये
आशान्वित भरपूर.
मुस्कानों से
'सलिल' न होगा
पीड़ा का अनुमान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
उत्तर का
प्रत्युत्तर देना
बहुत सहज आसान.
कह न अनर्गल
मौन साधना
क्या जानें नादान?
जी सचमुच
है बड़ा, 'सलिल' वह
नहीं दिखता शान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.
दिल को छू जाने वाली, एक बेहतरीन रचना. बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसलिल जी, कभी हमारे ब्लॉग पर भी पधारें.
जवाब देंहटाएंhttp://premras.blogspot.com
खतरनाक है जी.....
जवाब देंहटाएंक्या प्यार से समझाया है...
कुंवर जी,
सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअद्वितीय रचना...सदैव की भांति....
जवाब देंहटाएंबहुत आनंद आया पढ़कर...आभार..
Aapki rachna padi, ati uttam, maja aa gaya....
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