गुरुवार, 6 मई 2010

गीत : जब - तब --संजीव 'सलिल'

गीत :

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जब - तब

संजीव 'सलिल'


अभिषेक किया जब अक्षर का,

तब कविता का दीदार मिला.
शब्दों की आराधना करी-
तब भावों का स्वीकार मिला.
जब छंद बसाया निज उर में
तब कविता के दर्शन पाये.
पर पीड़ा जब अपनी समझी
तब जीवन के स्वर मुस्काये.
जब वहम अहम् का दूर हुआ
तब अनुरागी मन सूर हुआ.
जब रत्ना ने ठोकर मारी
तब तुलसी जग का नूर हुआ.
जब खुद को बिसराया मैंने
तब ही जीवन मधु गान हुआ.
जब विष ले अमृत बाँट दिया
तब मन-मंदिर रसखान हुआ..
जब रसनिधि का सुख भोग किया
तब 'सलिल' अकिंचन दीन हुआ.
जब जस की तस चादर रख दी
तब हाथ जोड़ रसलीन हुआ..
. ********************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

2 टिप्‍पणियां:

  1. अभिषेक किया जब अक्षर का
    तब कविता का दीदार हुआ
    और भी
    जब खुद को बिसराया मैने
    तब ही जीवन मधुगान हुआ.
    रसमय होने के लिये रसलीन होना जरूरी है
    बिना खुद को बिसराये भला मधुलीन कैसे हुआ जा सकता है
    रसयुक्त बाते
    रसमय बना दिया

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  2. अभिषेक किया जब अक्षर का
    तब कविता का दीदार हुआ
    जब छंद बसाया निज उर में
    तब कविता के दर्शन पाए
    ........आचार्य जी! कितने सहजता से आप पते की बात कहा जाते हैं ....
    भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं