मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

नवगीत: मत हो राम अधीर...... --संजीव 'सलिल'

*
जीवन के
सुख-दुःख हँस झेलो ,
मत हो राम अधीर.....
*
भाव, आभाव, प्रभाव ज़िन्दगी.
मिल्न, विरह, अलगाव जिंदगी.
अनिल अनल परस नभ पानी-
पा, खो, बिसर स्वभाव ज़िन्दगी.

अवध रहो
या तजो, तुम्हें तो
सहनी होगी पीर.....
*
मत वामन हो, तुम विराट हो.
ढाबे सम्मुख बिछी खाट हो.
संग कबीरा का चाहो तो-
चरखा हो या फटा टाट हो.

सीता हो
या द्रुपद सुता हो
मैला होता चीर.....
*
विधि कुछ भी हो कुछ रच जाओ.
हरि मोहन हो नाच नचाओ.
हर हो तो विष पी मुस्काओ-
नेह नर्मदा नाद गुंजाओ.
जितना बहता
'सलिल' सदा हो
उतना निरमा नीर.....
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil

1 टिप्पणी:

  1. शब्दों का तारतम्य ही तो नवगीत की खूबसूरती है
    वाह
    बहुत सुन्दर, मनमोहक

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