शुक्रवार, 5 मार्च 2010

नवगीत: आँखें रहते सूर हो गए --संजीव 'सलिल'

नवगीत;

संजीव 'सलिल'
*
आँखें रहते सूर हो गए,
जब हम खुद से दूर हो गए.
खुद से खुद की भेंट हुई तो-
जग-जीवन के नूर हो गए...
*
सबलों के आगे झुकते सब.
रब के आगे झुकता है नब.
वहम अहम् का मिटा सकें तो-
मोह न पाते दुनिया के ढब.
जब यह सत्य समझ में आया-
भ्रम-मरीचिका दूर हो गए...
*
सुख में दुनिया लगी सगी है.
दुःख में तनिक न प्रेम पगी है.
खुली आँख तो रहो सुरक्षित-
बंद आँख तो ठगा-ठगी है.
दिल पर लगी चोट तब जाना-
'सलिल' सस्वर सन्तूर हो गए...
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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

1 टिप्पणी:

  1. निरंतर आपको पढ़ती रही तो कुछ वर्षों में पचास सौ ग्राम वजन की कविता लिखने में समर्थ संभवतः मैं भी हो जाउंगी...
    क्या लिखा है आपने...ओह्ह...लाजवाब !!!!

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