सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

सामयिक कविता: संजीव 'सलिल'

सामयिक कविता:


संजीव 'सलिल'

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हर चेहरे की अलग कहानी, अलग रंग है.

अलग तरीका, अलग सलीका, अलग ढंग है...

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भगवा कमल चढ़ा सत्ता पर जिसको लेकर

गया पाक बस में, आया हो बेबस होकर.

भाषण लच्छेदार सुनाये, सबको भये.

धोती कुरता गमछा धारे सबको भाये.

बरस-बरस उसकी छवि हमने विहँस निहारी.

ताली पीटो, नाम बताओ- ......................

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गोरी परदेसिन की महिमा कही न जाए.

सास और पति के पथ पर चल सत्ता पाए.

बिखर गया परिवार मगर क्या खूब सम्हाला?

देवरानी से मन न मिला यह गड़बड़ झाला.

इटली में जन्मी, भारत का ढंग ले लिया.

बहुत दुलारी भारत माँ की नाम? .........

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यह नेता भैंसों को ब्लैक बोर्ड बनवाता.

कुर्सी पड़े छोड़ना, बीबी को बैठाता.

घर में रबड़ी रखे मगर खाता था चारा.

जनता ने ठुकराया अब तडपे बेचारा.

मोटा-ताज़ा लगे, अँधेरे में वह भालू.

जल्द पहेली बूझो नाम बताओ........?

*

माया की माया न छोड़ती है माया को.

बना रही निज मूर्ति, तको बेढब काया को.

सत्ता प्रेमी, कांसी-चेली, दलित नायिका.

नचा रही है एक इशारे पर विधायिका.

गुर्राना-गरियाना ही इसके मन भाया.

चलो पहेली बूझो, नाम बताओ........

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छोटी दाढीवाला यह नेता तेजस्वी.

कम बोले करता ज्यादा है श्रमी-मनस्वी.

नष्ट प्रान्त को पुनः बनाया, जन-मन जीता.

मरू-गुर्जर प्रदेश सिंचित कर दिया सुभीता.

गोली को गोली दे, हिंसा की जड़ खोदी.

कर्मवीर नेता है भैया ..............

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बंगालिन बिल्ली जाने क्या सोच रही है?

भय से हँसिया पार्टी खम्बा नोच रही है.

हाथ लिए तृण-मूल, करारी दी है टक्कर.

दिल्ली-सत्ताधारी काटें इसके चक्कर.

दूर-दूर तक देखो इसका हुआ असर जी.

पहचानो तो कौन? नाम .....................

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तेजस्वी वाचाल साध्वी पथ भटकी है.

कौन बताये किस मरीचिका में अटकी है?

ढाँचा गिरा अवध में उसने नाम काया.

बनी मुख्य मंत्री, सत्ता सुख अधिक न भाया.

बडबोलापन ले डूबा, अब है गुहारती.

शिव-संगिनी का नाम मिला, है ...............

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मध्य प्रदेशी जनता के मन को जो भाया.

दोबारा सत्ता पाकर भी ना इतराया.

जिसे लाडली बेटी पर आता दुलार है.

करता नव निर्माण, कर रहा नित सुधार है.

दुपहर भोजन बाँट, बना जन-मन का तारा.

जल्दी नाम बताओ वह ............. हमारा.

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डर से डरकर बैठना सही न लगती राह.

हिम्मत गजब जवान की, मुँह से निकले वाह.

घूम रहा है प्रान्त-प्रान्त में नाम कमाता.

गाँधी कुल का दीपक, नव पीढी को भाता.

जन मत परिवर्तन करने की लाता आँधी.

बूझो-बूझो नाम बताओ ......................

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बूढा शेर बैठ मुम्बई में चीख रहा है.

देश बाँटता, हाय! भतीजा दीख रहा है.

पहलवान है नहीं मुलायम अब कठोर है.

धनपति नेता डूब गया है, कटी डोर है

शुगर किंग मँहगाई अब तक रोक न पाया.

रबर किंग पगड़ी बाँधे, पहचानो भाया.

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रंग-बिरंगे नेता करते बात चटपटी.

ठगते सबके सब जनता को बात अटपटी.

लोकतन्त्र को लोभतंत्र में बदल हँस रहे.

कभी फांसते हैं औरों को कभी फँस रहे.

ढंग कहो, बेढंग कहो चल रही जंग है.

हर चहरे की अलग कहानी, अलग रंग है.


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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

3 टिप्‍पणियां:

  1. सभी नेता कवर हो गये आचार्य जी. :)

    बहुत उम्दा!

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  2. आदरणीय ,
    क्या कविता कही है!! शुरू से आखरी तक रोचक तो है ही पर नेताओ के चरित्र का भी बहुत खूब बखान किया आपने ....आभार!!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  3. बड़ी रोचक रचना है. पढ़कर आनंद आगया.
    नेताओं का असल रूप दिखाया है. बधाई.
    महावीर शर्मा

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