अभिनव प्रयोग:
दोहा-गीत
-संजीव 'सलिल',संपादक दिव्य नर्मदा
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक।
स्नेह-सलिल सिंचन करें,
महकें सुमन अनेक...
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मन-वृन्दावन में बसे,
कोशिश का घनश्याम।
तन बरसाना राधिका,
पाले कशिश अनाम॥
प्रेम-ग्रंथ के पढ़ सकें,
ढाई अक्षर नेक।
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.....
*
कंस प्रदूषण का करें,
मिलकर सब जन अंत।
मुक्त कराएँ उन्हें जो
सत्ता पीड़ित संत॥
सुख-दुःख में जागृत रहे-
निर्मल बुद्धि-विवेक।
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक।
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तरु कदम्ब विस्तार है,
संबंधों का मीत।
पुलक सुवासित हरितिमा,
सृजती जीवन-रीत॥
ध्वंस-नाश का पथ सकें,
निर्माणों से छेक।
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो लगायें एक.....
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आदरणीय् आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंआपका इन्दौर आना हुआ यह नईदुनिया में छपी एक ख़बर से ज्ञात हुआ, खेद इस बात का है कि आपसे मुलाकात नही हो पायी।
मैनें , पहले भी हिन्द-युग्म पर यह कहा है कि मैं एकलव्य की भांति आपका शिष्य हूँ।
गुरूवर आज पुनि दीन्हें, मशविरा इक नेक
जनसंख्या को रोककर, पेड़ लगाओ अनेक
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
bahut badhiya doha prastut kiya hai aapne
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