बुधवार, 25 नवंबर 2009

स्मृति गीत: तुम जाकर भी गयी नहीं हो...

स्मृति गीत:

पूज्य मातुश्री स्व. शांतिदेवी की प्रथम बरसी पर-

संजीव 'सलिल'

तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
बरस हो गया
तुम्हें न देखा.
मिति न किंचित
स्मृति रेखा.
प्रतिदिन लगता
टेर रही हो.
देर हुई, पथ
हेर रही हो.
गोदी ले
मुझको दुलरातीं.
मैया मेरी
बसी यहीं हो.
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
सच घुटने में
पीर बहुत थी.
लेकिन तुममें
धीर बहुत थी.
डगर-मगर उस
भोर नहाया.
प्रभु को जी भर
भोग लगाया.
खाई न औषधि
धरे कहीं हो.
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
गिरी, कँपा
सारा भू मंडल.
युग सम बीता
पखवाडा-पल.
आँख बोलती
जिव्हा चुप्प थी.
जीवन आशा
हुई गुप्प थी.
नहीं रहीं पर
रहीं यहीं हो
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*

2 टिप्‍पणियां:

  1. वह माँ के आँचल की छाया जिसमे छिपकर सो जाता था,
    वही पुराना टुटा छप्पर जहाँ सपनो मे खो जाता था
    मधुर सुरिली माँ की लोरी-तड़फ़ाएगी तुझे जरुर कहीं
    माता जी को शत-शत नमन

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  2. सलिल जी,
    आज ही के दिन मैंने भी माँ को खोया था। बस उसे पूरे पंद्रह वर्ष हो गए और आप पहली बरसी पर उन्‍हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं। इससे श्रेष्‍ठ श्रद्धांजलि और क्‍या होगी? मेरा भी नमन।

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