नवगीत:
संजीव 'सलिल'
दवा ज़हर की
सिर्फ ज़हर है...
*
विश्वासों को
तजकर दुनिया
सीख-सिखाती तर्क.
भुला रही
असली नकली में
कैसा, क्या है फर्क?
अमृत सागर सुखा
पूछती कहाँ खो गयी
हर्ष-लहर है...
*
राष्ट्र भूलकर
महाराष्ट्र की
चिंता करता राज.
असल नहीं, अब
हमें असल से
ज्यादा प्यारा ब्याज.
प्रकृति पुत्र है,
प्रकृति का शोषक
ढाता रोज कहर है....
*
दुनिया पूज रही
हिंदी को.
हमें न तनिक सुहाती.
परदेशी भाषा
अन्ग्रेज़ी हमको
'सलिल' लुभाती.
लिखीं हजारों गजल
न लेकिन हमको
ज्ञात बहर है...
*****************
शनिवार, 14 नवंबर 2009
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बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंराष्ट्र भूलकर महाराष्ट्र की चिंता करता राज
जवाब देंहटाएंअसल की चिंता नहीं, हमको प्यारा व्याज
बहुत खूब !
वाह बहुत बढिया !!
जवाब देंहटाएंलाजवाब श्ब्द जैसे चीख चीख कर कह रहे हैं कि ये आचार्य सलिल जी ही लिख सकते हैं बहुत सुन्द। बधाई
जवाब देंहटाएंआशीष कुमार 'अंशु' said...
जवाब देंहटाएंSundar hai...
14 November, 2009 2:39 AM
गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' said...
बेहतरीन रचना
आपका आभार
14 November, 2009 6:48 AM
जबलपुर-ब्रिगेड said...
संजीव जी
की लेखनी की
कोई सानी नहीं
14 November, 2009 6:49 AM