शनिवार, 18 अप्रैल 2009

नवगीत: तन गाड़ी को चला रहा मन

नव गीत

तन गाड़ी को

चला रहा मन

सौ-सौ कोडे मार;

स्वार्थ सेठ की

करना होगी

तुझे विवश बेगार...

आस-प्यास हैं

दो कारिंदे

निर्दय-निठुर

फेंकते फंदे

जाने-अनजाने

फंस जाते हम

हिम्मत को हार...

चाहा जागें

पर हम सोये

भूल-भुलैयां में

फंस खोये

मृगतृष्णा में

लालच ने

भटकाया

कर लाचार॥

नेह नर्मदा

नहा न पाये

कलुष-कुटिलता

बहा न पाये

काला-पीला

करो सिखाता

दुनिया का बाज़ार...

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