शनिवार, 9 जनवरी 2010

कुण्डलिनी: --आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा

कुण्डलिनी

आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा



करुणा संवेदन बिना, नहीं काव्य में तंत..

करुणा रस जिस ह्रदय में वह हो जाता संत.

वह हो जाता संत, न कोई पीर परायी.

आँसू सबके पोंछ, लगे सार्थकता पाई.

कंकर में शंकर दिखते, होता मन-मंथन.

'सलिल' व्यर्थ है गीत, बिना करुणा संवेदन.

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बुधवार, 6 जनवरी 2010

सरस्वती वंदना : २ -संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : २


संजीव 'सलिल'

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हे हंसवाहिनी!, ज्ञानदायिनी!!

अम्ब विमल मति दे...

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जग सिरमौर बने माँ भारत.

सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.

नव बल-विक्रम दे...

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साहस-शील ह्रदय में भर दे.

जीवन त्याग-तपोमय कर दे.

स्वाभिमान भर दे...

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लव-कुश, ध्रुव-प्रह्लाद हम बनें.

मानवता का त्रास-तम हरें.

स्वार्थ विहँस तज दें...

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दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा.

घर-घर हों, काटें हर बाधा.

सुख-समृद्धि सरसे...

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नेह-प्रेम की सुरसरि पावन.

स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.

'सलिल' निरख हरषे...

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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

Acharya Sanjiv Salil

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रविवार, 3 जनवरी 2010

गीतिका: तितलियाँ --संजीव 'सलिल'

गीतिका



तितलियाँ

संजीव 'सलिल'
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यादों की बारात तितलियाँ.

कुदरत की सौगात तितलियाँ..

बिरले जिनके कद्रदान हैं.

दर्द भरे नग्मात तितलियाँ..

नाच रहीं हैं ये बिटियों सी

शोख-जवां ज़ज्बात तितलियाँ..

बद से बदतर होते जाते.

जो, हैं वे हालात तितलियाँ..

कली-कली का रस लेती पर

करें न धोखा-घात तितलियाँ..

हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं

क्या हैं शाह औ' मात तितलियाँ..

'सलिल' भरोसा कर ले इन पर

हुईं न आदम-जात तितलियाँ..

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