शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

गीत: हम गिर-उठकर खड़े हुए हैं

गीत

हम गिर-उठकर

खड़े हुए हैं।

जो न गिरे

वे पड़े हुए हैं...

सूरत-सूरत

सुंदर मूरत,

कहीं न कुछ भी

बिना जरूरत।

पल-प्रति पल

जो जिए बदलकर,

जुड़े टूटकर-

जमे पिघलकर।

जो न महकते

सड़े हुए हैं...

कंकर-कंकर

देखे शंकर।

शिव-शव दोनों

ही प्रलयंकर।

मन्दिर-मन्दिर

बजाते घंटे;

पचा प्रसादी-

पलते पंडे।

तकदीरों से

बड़े हुए हैं...

ये भी, वे भी

दोनों कच्चे,

ख़ुद को बड़ा

समझते बच्चे।

सीख न पाते

किंतु सिखाते,

पुष्प वृक्ष से

झडे हुए हैं...

*****

रविवार, 2 अगस्त 2009

गीत: दीप-वर्तिका सदृश जलेंगे

गीत

> दीपवर्तिका

सदृश जलेंगे


आपद-विपदा


विहँस सहेंगे...


हैं लघु कण



यह सत्य जानते,

पर विराट से

समर ठानते।



पचा न पायें



आप हलाहल,



धार कंठ में-



हम उबारते।

शिवता-सुंदरता

के पथ पर-

सत का कर

गह नित्य बढ़ेंगे...

कहीं न परिमल



हर दल दलदल।

भ्रमर-दंश से



दंशित शतदल।


सलिल-धार


अनवरत प्रवाहित।

शब्द अमरकंटक


से प्रति पल।

लोक नर्मदा

नीति वर्मदा


कार्य शर्मदा


सतत करेंगे...



अजर-अमर हैं

हम अक्षर हैं।

नाद-ताल हैं

सरगम-स्वर हैं।

हम अनादि हैं,

हम अनंत हैं।



सादि-सांत हम



क्षण-भंगुर हैं॥



सच कहते हैं

सब जग सुन ले,

मौत वरेंगे पर न मरेंगे,



*****